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गार्डनिंग में पौधों को नियमित तौर पर पानी देना सबसे बड़ा काम है। हालांकि छोटे गार्डन में पौधों को पानी देना आसान है। लेकिन जिनके गार्डन में सैकड़ों व हजारों की संख्या में पौधे होते हैं तो उनके लिए यह काम बेहद कठिन होता है। कभी-कभी ऐसा होता है जब हम गार्डन के पौधों को पानी देना ही भूल जाते हैं। कहीं बाहर जाने की स्थिति में भी पौधे सूखने और खराब होने का खतरा रहता है। ऐसे में सेल्फ वाटरिंग सिस्टम पौधों को पानी देने की चिंता को दूर करेगा। इस सिस्टम की मदद से पौधे को पानी देना नहीं पड़ता। पौधों को अपनी जरूरत अनुसार पानी मिलता रहता है।  इस लेख में हम सेल्फ वाटरिंग सिस्टम (self Plant Watering System) के बारे में जानकारी लेंगे।

सेल्फ वाटरिंग सिस्टम 

सेल्फ वाटरिंग सिस्टम एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पौधों को ऑटोमेटिक पानी मिलता रहता है। इस सिस्टम में पौधों की जड़ों में सीधे पानी पहुंचता है। पानी सीमित मात्रा में पहुंचता है। बाजार में ऐसे अनेक सिस्टम मिल  रहे हैं। इसमें

  • सेल्फ वाटरिंग प्लांटर्स
  • ड्रिप इरिगेशन सिस्टम
  • पिचर इरिगेशन सिस्टम
  • फनल इरिगेशन सिस्टम
  • वाटरिंग ग्लोब आदि शामिल है।

ऐसे में पौधों के अधिक होने पर इस सिस्टम को अपनाया जा सकता है। इस विधि से पानी देना काफी आसान है। इस सिस्टम की मदद से आप लंबे टूर पर भी जा सकते हैं। इस लेख में हम अलग अलग विधि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

 सेल्फ वाटरिंग प्लांटर्स

आजकल बाजार में सेल्फ वाटरिंग प्लांटर्स मिल रहे हैं।  सेल्फ वॉटरिंग कंटेनर्स वे गमले होते हैं, जिनकी तली में एक अतिरिक्त कंटेनर होता है। इसमें अतिरिक्त कंटेनर के अंदर ही पानी भरा होता है। इसमें नीचे गमले से ही पानी ऊपर मिट्‌टी वाले गमले में पहुंचता है।  कपड़े या रस्सी के माध्यम से ऊपरी गमले में पानी आ जाता है, जिससे मिट्टी में लगातार नमी बनी रहती है। इस तरह के कंटेनर बाजार में बहुत मिल रहे हैं। इसके साथ ही आप इन्हें आसानी से घर पर बना सकते हैं।

ड्रिप इरिगेशन सिस्टम 

खेतों में सिंचाई के लिए भी ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का प्रयोग व्यापक स्तर पर किया जा रहा है।इस तकनीक में पौधों की जड़ों तक सीधे पानी को पहुँचाया जाता है। इससे पानी व समय दोनों की बचत की जा सकती है। इस सेल्फ ड्रिप इरिगेशन मेथड में पानी की मुख्य पाइप लाइन से एक नली को जोड़ा जाताा है। फिर इसके बाद मुख्य पाइप लाइन में छोटी-छोटी नलियों को जोड़ा जाता है। इन छोटी नलियों को हर एक गमले के ऊपर से गुजारा जाता है। इस नलियों में छोटे-छोटे छेद होते हैं। जिससे पौधों में पानी पहुंचता है। इससे पानी की बर्बादी भी नहीं होती है।

पिचर इरिगेशन सिस्टम 

इस सेल्फ वाटरिंग सिस्टम के तहत पौधे के पास एक गड्‌ढा किया जाता है। जिसमें मटका या अन्य कोई मिट्‌टी का बर्तन लगाया जाता है। इस बर्तन को ढकते नहीं है। इस बर्तन में पानी रखा जाता है। इससे मटके के आसपास की मिट्टी में नमी बनी रहती है। इससे नमी पौधे की जड़ों नमी पहुंचाती है। इससे बहुत ही कम पानी के साथ सिंचाई की जा सकती है। बता दें कि यह पौधों को पानी देने की एक पुरानी विधि है।

फनल इरिगेशन सिस्टम

फनल इरिगेशन सिस्टम में किसी भी बोतल में फनल लगाया जाता है। बता दें कि फनल के माध्यम से बोतल में से पानी निकलने की गति को कम किया जा सकता है। इस सिस्टम को तैयार करने के लिए प्लास्टिक की बोतल में  फनल लगाई जाती है। बोतल को उल्टा रखते हुए फनल को मिट्टी में दबा दिया जाता है। इससे फनल के माध्यम से पानी मिट्टी द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है और उसमें लगातार नमी बनी रहती है।

वाटरिंग ग्लोब

वाटरिंग ग्लोब भी फनल इरिगेशन सिस्टम की तरह ही है। वाटरिंग ग्लोब बाजार में उपलब्ध हैं। इस विधि में एक कांच या प्लास्टिक का बल्ब होता है, जिसमें एक फनल लगी होती है। इस बल्ब में पानी भरकर फनल के सिरे को गमले की मिट्टी में दबा देते हैं। जिससे पानी धीरे-धीरे मिट्टी में पहुंचता है। इससे मिट्टी में लगातार नमी बनी रहती है।

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