शहरों में बागवानी के लिए जगह ही नहीं बची है। पहले घर के आगे या पीछे पौधों के लिए जगह छोड़ी जाती थी, वहीं सड़कों से सटे हुए घर होते हैं। जिनमें एक पौधे के लिए भी स्पेस नहीं होता। लेकिन जिसे बागवानी का शौक हो तो वह पौधरोपण के लिए अपने आप जगह निकाल लेता है। ऐसे ही बागवानी के शौकीन हैं सुशील लेगा। डॉ सुशील लेगा हिसार के रहने वाले हैं। हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हिसार में फिजिकल एजुकेशन विभाग में प्रोफेसर हैं। सुशील जी को बागवानी का इतना शौक है कि उन्होंने घर के कोने-कोने को गार्डन में बदल दिया है।
घर में लगाए 700 से ज्यादा पौधे
डॉ. सुशील के घर में करीब 500 से 700 पौधे हैं। वह इन पौधों को बच्चों की तरह पालते हैं। उनका कहना है कि बागवानी उनका शौक है और पौधों की केयर करना उनकी जिम्मेदारी। यह उनके घर, मन और तन को स्वस्थ रखता है। उनका कहना है कि 500 से ज्यादा उनके पास गमले हैं। कई गमलों में दो से ज्यादा पौधे हैं। फिलहाल उन्होंने पौधों की गिनती नहीं की हैं। लेकिन गार्डन में 700 पौधों से ज्यादा है।
मां से बेटे में आया गार्डनिंग का शौक
गार्डनिंग को कभी काम के तौर पर नहीं किया जा सकता। यह शौक होता है। जिसमें आप गर्मी, पसीना, थकावट सब भूल कर सिद्दत के साथ मेहनत करते हैं। खिलते फूल, झूमती टहनियां और लटकते फल ही असली सुकून का अहसास कराते हैं। उनके परिवार में यह शौक उनकी मां को रहा। वह अपना अधिकतर वक्त पौधों के साथ बिताना पसंद करती हैं। ऐसे में यह शौक डॉ सुशील को भी लगा।
नौकरी के साथ करते हैं पौधों की केयर
डॉ. सुशील शाम पांच बजे तक यूनिवर्सिटी में होते हैं। वह घर और नौकरी की जिम्मेदारियां के साथ अपने बागवानी के शौक से प्रकृति को संजोने का काम कर रहे हैं। खास बात है कि उन्होंने पौधों की केयर के लिए किसी माली को भी नहीं रखा है। वे अपने परिवार की मदद से ही इस फूलों की बगिया को सजाए हुए हैं। इसके साथ ही वे अपने परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा करते है। उनका कहना है कि पौधे मेरे बच्चे की तरह हैं। इनके लिए मुझे फिलहाल किसी केयर टेकर की जरूरत नहीं। हालांकि उनका पूरा परिवार उनका सहयोगी है। खास तौर पर उनकी मां उनकी बहुत मदद करती है।
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घर बना सेल्फी प्वाइंट
पौधों से सजे और फूलों से महकते इस घर को देखकर हर कोई अचंभित हो जाता है। राहगीर भी घर पर नज़रें टिकाए बिना खुद को रोक नहीं पाते। भई वाह… कहते हुए एक सेल्फी जरूर लेते हैं। डॉ. सुशील से प्रेरित होकर आसपास के लोग भी जागरुक होकर पौधे लगा रहे हैं। वह खुद लोगों को ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने के लिए जागरूक करते हैं। उनका कहना है कि पौधे लगाने के लिए जगह की नहीं दिमाग की जरूरत पड़ती है।