वानप्रस्थ संस्था ने उत्साह एवं हर्षोल्लास से मनाया राष्ट्रीय हिन्दी दिवस
सीनियर सिटिज़न क्लब में उत्साह एवं हर्षोल्लास से राष्ट्रीय हिन्दी दिवस मनाया गया। क्लब के महासचिव डाॅ. जे. के . डांग ने सदस्यों का स्वागत करते हुए कहा आज का दिन स्वतंत्र भारत के इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसी दिन 14- सितंबर 1949 को संविधान – सभा ने हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। इस निर्णय को महत्व देने के लिए और हिन्दी के उपयोग को प्रचलित करने के लिए 1953 – के उपरांत हर साल 14 – सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है।
उन्होंने कहा कि भाषा के रूप में हिंदी ना सिर्फ़ भारत की पहचान है बल्कि ये हमारे जीवन मूल्यों संस्कृति एवं संस्कारों का परिचायक है । यह सरल,सहज एवं सुगम भाषा होने के कारण हिंदी संभवतः सबसे अधिक वैज्ञानिक भाषा है ।
मंच का संचालन करते हुए डा: दवीना ठकराल ने सभी हिंदी प्रेमियों को हिन्दी दिवस की बधाई प्रेषित की। एक स्वरचित कविता से अपनी भावाभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार दी
केवल एक ही दिवस क्यों हो हिन्दी का
हर पल, हर क्षण, हर वक़्त ही क्यों न हो हिन्दी का।
मन की भावनाएँ उजागर कर, जोड़े दिलों के तार हिन्दी,
संस्कृति का आधार,अभिव्यक्ति का सशक्तिकरण है हिन्दी।।
कबीर की वाणी, सूर के दोहे, रसखान के सवैया,
मीरा के राग, महादेवी के विरह, सुभद्रा के जोश में हिन्दी।।
हिंदी से ही है हिंदुत्व के पह्चान बसती इसमें हर हिन्दू की जान,
हिंदी को न समझो केवल मेहमान, दो हिन्दी को पूरा सम्मान।
भारत माता का हिन्दी से तिलक कर हृदयग्रहणी हिंदी से माँ की झोली भरें,
जनमानस की सोच बदलकर आज अभी से हिन्दी का उत्थान करें।
हिन्दी बोलें, हिंदी पढ़ें, हिंदी लिखें, हिंदी समझें और समझाएं,
हिन्दी दिवस केवल एक दिन ही न मनाकर हिंदी को दिल से अपनाएँ।
हिंदी के इतिहास पर हुई चर्चा
हिन्दी भाषा के इतिहास पर चर्चा करते उम्मेद सिंह ने कहा कि हिंदी भाषा की विरासत बड़ी समृद्ध है। संसार की श्रेष्ठतम भाषा व वाणी संस्कृत इसकी इसकी जननी है। वैदिक संस्कृत लोक संस्कृति पाली , प्राकृत और अपभ्रंश जैसे सौपानों से होते हुए हिंदी भाषा का जन्म हुआ। आज अंग्रेज़ी और मदारिन के बाद हिंदी संसार में तेज़ी तीसरी सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा है। हिंदी का व्याकरण बहुत समृद्ध है तथा यह उच्चारण के अनुसार लिखी जाती है । वर्तमान में कंप्यूटर के उपयोग में भी हिंदी भाषा खरी उतरी है। हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में वीना अग्रवाल ने अपने चिर परिचित अंदाज में कहा ..
“हिंदी से क्यों बेज़ार
इंग्लिश से क्यों इतना प्यार
छोड़ो भी ये रट्टा यार
ट्विंकल ट्विंकल लिटल स्टार.
भाषायें चाहे जितनी भी सीखिए , पर हिंदी की गरिमा को बनाए रखिये”
उन्होंने कहा कि
अंगरेजी जरूरत की भाषा है, हिंदी अपनत्व की…
मेरे लिए तो हर दिन हिंदी दिवस है..
फिर इसके लिए एक दिन मुकर्रर क्यों ? आजके समारोह की विशेष अतिथि लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्रधानाचार्य डाॅ. शमीम शर्मा ने सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा “शान से कहो मेरी भाषा हिंदी है”
उन्होंने बताया कि हिंदी सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा है। हर स्वर-व्यंजन से पूरित है। जैसा लिखते हैं वैसा ही पढ़ते हैं। शायद यही कारण है कि आज विदेशी विश्वविद्यालयों में भी हिंदी पढ़ाई जा रही है लेकिन हमारे देश में उल्टा है – अंग्रेजी 364 दिन और हिन्दी एक दिन । जब तक दृष्टिकोण नहीं बदलेगा , सरकारी प्रतिबद्धता स्पष्ट नहीं होगी तब तक स्थिति में सुधार नहीं हो सकता।
डाॅ. पुष्पा खरब ने सोहन लाल द्विवेदी रचित कविता
“ कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती”
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, बार- बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना” प्रस्तुत कर सदस्यों को साथ गाने के लिए प्रेरित किया।
हिंदी दिवस “निज भाषा उन्नति रहे, सब उन्नति के मूल
दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम में मुख्य संचार अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त श्री धर्मपाल ढुल ने अपना वक्तव्य हिंदी के पितामह भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का दोहा “निज भाषा उन्नति रहे, सब उन्नति के मूल। बिनु निज भाषा ज्ञान के, रहत मूढ़-कए-मूढ़ ।।” से शुरू किया। उन्होंने कहा कि भाषा का विकास और विस्तार नदी के प्रवाह की तरह होता है जिसमें समन्वय बना रहता है और बाधाओं से रुकता नहीं हैं। हिंदी के विकास की गति चर्म की ओर बढ़ रही है। बोलने और समझने वालों की संख्या के मानक पर विश्व में सबसे ऊपर है। हिंदी भाषा भारत की संपर्क भाषा बन रही है और वह दक्षिण पश्चिमी एशिया की प्रमुख भाषा बनने की ओर अग्रसर है।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजी राजाश्रय लेकर विश्व की सम्पर्क भाषा बनी है जबकि हिंदी अपनी शाब्दिक सक्षमता, वैज्ञानिक व्याकरण और लिपि के आधार पर विस्तार ले रही है। हिंदी का विकास ही संस्कृत के गर्भ से निकलने वाली भाषाओं के अपभ्रंश से हुआ है। हिंदी अपनी पचास उपभाषाओं से शब्द लेती भी रही है और शब्द देती भी रही है । अब अपनी शाब्दिक सक्षमता का लाभ विश्व की अन्य भाषाओं को दे रही है और उनके शब्दों को स्वयं में समाहित कर रही है। डाॅ. सुनीता जैन ने अपनी बुलंद आवाज़ में विकास बंसल रचित कविता
“ तुम मुझे कब तक रोकोगे “
मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं ।
दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाएं… कुछ कर जाएं… ।।
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे..
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे…
अपनी हद रौशन करने से,
तुम मुझको कब तक रोकोगे ….,..प्रस्तुत कर सब में जोश भर दिया।
इन्दु गहलावत ने हरिवंश राय बच्चन रचित कविता
“ जो बीत गई सो बात गई।
जीवन में एक सितारा था,
माना, वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया,
अंबर के आनन को देखो,
कितने इसके तारे टूटे,
कितने इसके प्यारे छूटे,
जो छूट गए फ़िर कहां मिले;
पर बोलो टूटे तारों पर,
कब अंबर शोक मनाता है !
जो बीत गई सो बात गई “ गा कर सदस्यों को भूत काल को भूल कर आगे बढ़ने के लिए आह्वान किया।
हिंदी दिवस- ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
कार्यक्रम का समापन की ओर ले जाते हुए डाॅ. डांग ने अपने बचपन की यादों को ताज़ा करते हुए
अयोध्या सिंह उपाध्याय की प्रेरणा दायक कविता “एक बूँद” के कुछ अंश पेश किए….
“ ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी एक बूंद कुछ आगे बढ़ी,
सोचने फिर फिर यही मन में लगी
आह क्यों घर छोड़ कर मैं यों बढ़ी “
कविता का अंतिम अनुच्छेद बहुत ही प्रेरणा दायक है …
“लोग यों ही हैं झिझकते सोचते
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर
किंतु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूंद लौं कुछ ओर ही देता है कर” ।
अन्त में डॉक्टर जे .के . डांग ने डा. शमीम शर्मा सहित सभी वक्ताओ एवं सदस्यों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि हिंदी का प्रसार अब अपने आप तेज़ी से बढ़ रहा है और हिन्दी भाषा का भविष्य उज्जवल है।