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हिसार। हरियाणा विद्युत प्रसार निगम के पूर्व सुपरिटेंडिंग इंजीनियर व हिसार के सिविल इंजीनियर विजय प्रभाकर ने शहरों में बेतरतीब ढंग से बनाए जा रहे बहुमंजिला रिहायशी व कमर्शियल भवनों के चलन पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने हेल्दी हाउसिंग, सेहतमंद रिहायश के सिद्धांत पर अमल की सिफारिश की है।
वानप्रस्थ संस्था की विशेष भाषणमाला श्रृंखला में प्रस्तुति देते हुए उन्होंने हिसार व अन्य शहरों में बहुमंजिला भवनों के अंधाधुंध निर्माण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि नगर की जमीन तीन मंजिल से ज्यादा का भार लेने लायक नहीं है और मकानों में आ रही दरारें इसका स्पष्ट प्रमाण हैं।
“किसी बड़े भूकंप की स्थिति में ये बिल्डिंग धड़ाम से गिर सकती हैं जैसा कि हाल में तुर्की और सीरिया में आए भूकंप से हुआ है। डीपीसी के ऊपर काली प्लास्टिक की शीट लगाकर दीवारें उठाना बिल्कुल गलत है। इस कारण नींव और दीवार के बीच जुड़ाव नही बन पाता और मकान की मजबूती बिलकुल कम हो जाती है। कहीं तो दीवारें सरक भी जाती हैं।”

मिट्‌टी को बैठने में लगते हैं 20 से 25 साल

विजय प्रभाकर कहते हैं कि सीलन की वजह से भी मकान कमज़ोर होते हैं। भराई के प्लाटों में मिट्टी के पूरी तरह बैठने में 20 से 25 साल का समय लगता है। अक्सर लोग प्लॉट की भराई के साथ ही फर्श व मकान बना लेते हैं। भरत में पानी देते हैं ताकि मिट्टी बैठ जाए। वे यह भूल जाते हैं कि मिट्टी में पानी की नमी जल्दी नहीं सूखती। डीपीसी की प्रॉपर पोजिशनिंग के बिना यह नमी कुछ समय बाद दीवारों व फर्श में आ जाती है। टाइल लगाकर ढकने से इसे रोका नहीं जा सकता। यह टाइलों से ऊपर निकल जाती है। चिकनी मिट्टी गीली अवस्था में पानी से बदतर और सूखी अवस्था में पत्थर से बेहतर होती है। सीलन और दरारों की समस्या यूं तो पूरे शहर में है, पर सेक्टर 9/11, सेक्टर 4 और 14 व 33 में ज़्यादा देखने को मिल रही है।”

प्लास्टिक पेंट का उपयोग भी गलत

प्लास्टिक पेंट के उपयोग को भी विजय प्रभाकर सही नहीं मानते। उन्होंने बताया कि इसमें केमिकल होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकते हैं। प्लास्टिक पेंट दीवार पर एक ऐसी सख्त झिल्ली बनाता है जो नमी को सूखने नहीं आने देती। अंदर रोक रखती है जब तक की नमी की वाष्प पेंट को ही न उखाड़ दे। इस तरह दीवार भद्दी लगने लगती है।”
“बालकनी की लोहे की रेलिंग और सीमेंट के अलग अलग फैलाव के कारण भी क्रैक व दरारें आ जाती हैं। दीवारों में आई दरारों में सीमेंट भरने से हमेशा मजबूती नहीं लौटती। जब तक नमी का कारण नहीं ढूंढा जाता और निवारण नहीं किया जाता, समस्या बनी रहती है।”

सीलिंग बन रही बीमारियों का कारण

विजय प्रभाकर घरों में फाल्स सीलिंग और कार्पेट को बीमारियों का घर बताते हैं। एक साल बाद ही फाल्स सीलिंग में कितनी गर्द होती है जो बरसों तक इकट्ठा होती रहती है और माइक्रोब्स का डेरा बनी रहती है तथा एलर्जी व अन्य बीमारियों का मुख्य कारण बनती है। घरों से रोशनदान गायब हो जाना भी अच्छी बात नहीं है। बंद कमरों में कार्बन डाइऑक्साइड गैस का प्रतिशत बढ़ जाता है जो सेहत के लिए हानिकारक है। एयर कंडीशनर व पंखे बंद कमरों में कार्बन डाइऑक्साइड युक्त हवा को बिलोते रहते हैं। इसी कारण आदमी थका हुआ सा उठता है। कुदरती हवा में सोने वाले फुर्ती से उठते हैं। रोशनदान घर में दो डिग्री तक कम तापमान रखते हैं।”

पार्कों में लगाए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम

विजय प्रभाकर हिसार शहर के विभिन्न सेक्टरों व मोहल्लों में जाकर मकानों का जायज़ा लेते रहते हैं और लोगों को मुफ्त में सही सलाह देते हैं। वे सामाजिक कार्यों से भी जुड़े हैं। उन्होंने प्रो सतीश कालड़ा के साथ मिलकर पहले अपने खर्च से और फिर नागरिकों के सहयोग से अनेक पार्कों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए हैं जिनसे अर्बन एस्टेट व अन्य सेक्टरों में जलभराव की समस्या काफ़ी हद तक कम हो गई है।
विजय प्रभाकर की राय है कि हर घर में छतों पर बरसने वाले पानी के लिए छोटा सा वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम होना चाहिए। पानी को बचाकर ही हम भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं।

गोष्ठी में ये हुए शामिल

गोष्ठी में उपस्थित अनेक सदस्यों ने घरों में नमी की समस्या व अन्य मुद्दों को लेकर सवाल पूछे व अपने अनुभव सांझा किए। इनमें वानप्रस्थ संस्था के प्रधान प्रो सुदामा अग्रवाल, महासचिव जे के डांग, प्रो पुनिया, प्रो बी के सिंह, दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम के पूर्व चीफ कम्युनिकेशन ऑफिसर डी पी ढुल तथा दूरदर्शन के पूर्व समाचार निदेशक अजीत सिंह व अन्य शामिल थे।

 

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