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बड़े शहरों की गगनचुंबी इमारतों से दूर एक सड़क ऐसी है, जो गांव की ओर जाती है। इस सड़क की दो खास बातें हैं। एक तो इसके गड्ढे और दूसरी बात सड़क किनारे बनी गोबर की हट यानि बिटौड़े। कहने को इस गोबर की हट में उपलों को सुरक्षित रखा जाता है, लेकिन इस पर बनी आकृतियां आज के बच्चों और युवाओं को आकर्षित करती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ये बिटौड़ें महिलाओं में छिपी कला को उकेरने के लिए कैनवास का काम करते हैं। इस लेख के माध्यम से जानते हैं इन बिटौड़ों के पीछे की कहानी और प्रक्रिया…

ग्रामीण महिलाओं की ये कला भी काबिले तारिफ है जिसे तैयार करने में महीनों का समय लग जाता है। चुल्हे का लेप, बिटौड़ा बनाना ये ग्रामीण महिलाओं का सबसे पंसदीदा कामों में से एक है। इन कामों में अपना हुनर दिखाने का मौका मिलता है। बिटौड़ा बनाना एक दिन का काम नहीं है, हफ्तों लग जाते हैं इसको पूरी तरह से तैयार होने में।

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जानें क्या होता है बिटौड़ा

बिटौड़ा महिलाओं का कैनवास है, जिसे वो छोटे-बड़े उपले रुपी रंगों से सजाती हैं। ये बिटौड़ा बनाना बड़ी मेहनत और तजुर्बे का काम है। हर किसी के बस की बात नहीं है ये कलाकारी करनी। बिटौड़ा गोबर के उपलों से बना होता है। जब उपले सूख जाते हैं, तो उनको इकट्ठा करने के लिए ग्रामीण महिलाओं ने बिटौड़ा बनाने वाला रास्ता खोजा है। सारे उपले इकट्ठे करके तरीके से लाइन में ऐसे लगाती हैं कि वो सुंदर डिजाइन बन जाता है। गांव की कुछ गिनी-चुनी महिलाओं को ही ये सुंदर डिजाइन के बिटौड़े लगाने आते हैं। बिटौड़ा लगाते समय ध्यान देने वाली बात ये है कि एक भी उपला हिल गया तो सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है।

भूमि पूजन 

बिटौड़े की नींव रखी जाती है। गांव की औरते पूरे रीति-रिवाज से बिटौड़ा रखती है। जिस जगह पर बिटौड़ा रखना होता है वहां पहले पूजा की जाती है। औरतों का मानना है ऐसा करना शुभ होता है। थाली में मूंग के दाने, लोटे में पानी, और रोली-चावल लेकर महिलाएं पूजा करती हैं। जहां इसकी नींव रखी जानी है, वहां एक उपला रखकर उसपर मूंग चढाएं जाते हैं, फिर पानी से सींचकर तिलक किया जाता है।

इनके बिटौड़ों को भी लग जाती है नजर

भारत में ये मान्यता है कि हर सुंदर चीज को नजर लगने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। महिलाएं अपने बिटौड़े को लेकर भी इस धारणा को मानती हैं। महिलाओं का कहना है कि सुंदर बिटौड़े को भी नजर लग जाती है। ये ऐसा मानता हैं कि नजर लगने पर बिटौड़े के उपले नीचे गिरने लगते हैं और बिटौड़ा खराब हो जाता है। नजर से बचाने के लिए काले रंग का एक पॉलिथिन या कोई कपड़ा लकड़ी से बांधकर बिटौड़े के ऊपर लगाया जाता है। यहां तक कि चप्पल भी टांग दी जाती है।

बारिश से पहले होता है ये उपलों का घर तैयार

ये काम बड़ा दिमाग लगाने वाला होता है। आस पड़ोस की सारी महिलाएं इकट्ठी होती हैं और ये उपले पकड़ाने का काम करती हैं। क्योंकि साल भर का ईधन इस बिटौड़े में रखती हैं। बिटौड़ा बनाने का समय बारिश से पहले का होता है। बारिश आने से पहले ही सारी महिलाएं अपना सारा ईंधन इकट्ठा कर लेती हैं। जो सर्दियों में भी काम आने वाला होता है। पशुओं का चाट रखने के लिए, अंगीठी में आग जलाने के लिए, होक्का भरने के लिए, इन उपलों का इस्तेमाल ग्रामीण करते हैं। महिलाएं एक दूसरे की मदद करती हैं और कई गीत गाते हुए भी इसको रखती हैं।

रात को करती हैं बिटौड़े की चौकीदारी

सर्दियों में महिलाएं अपने बिटौड़े को लेकर सचेत हो जाती हैं। घर से दूर खाली जगह में ये उपलों का घर बना हुआ होता है। सबसे ज्यादा भय इस घर में से उपले चोरी का होता है। बहुत से लोग हैं, जो सर्दियों में उपले चोरी करके ले जाते हैं। सुबह-सुबह जब महिलाएं बिटौड़े की साफ सफाई करने और नए उपले बनाने के लिए जाती हैं, तो चारों तरफ उपले चोरी का हंगामा हो जाता है। कुछ महिलाएं अपनी उपलों की रखवाली करती हैं। कुछ महिलाएं अपने बिटौड़े के निशानी करके आती हैं ताकि चोरी होने पर अंदाजा लगाया जा सके।

ग्रामीण महिलाओं में नहीं है टैलेंट की कमी

भारत की महिलाओं में टैलेंट की कमी नहीं है। अपने दिमाग से ये ऐसे-ऐसे डिजाइन बना देती हैं कि लोग दांतों तले उंगुली दबाकर इनकी कलाकारियों को देखते रहते हैं। गांव-देहात की ज्यादातर महिलाएं हस्तशिल्प में निपुण होती है। कढ़ाई-बुनाई, सिलाई आदि करती हैं। महिलाएं दरी बनाती हैं। घर को सजाने वाले समान बनाती हैं। काफी सारे सजावट के समान महिलाओं द्वारा बनाए जाते हैं।

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