हिसार। बड़ी उम्र के लोगों से अक्सर यह सवाल किया जाता है कि उनकी सेहत का क्या राज़ है। जीवन के 93 बसंत देख चुके हरप्रकाश सरदाना का सीधा सा जवाब है कि दैनिक जिंदगी में खानपान और जीवन शैली में अनुशासन बनाए रखिए और सबसे जरूरी यह कि मेलजोल बनाए रखिए।
वरिष्ठ नागरिकों की संस्था वानप्रस्थ में उन्होंने अपना 93वां जन्मदिन मनाया। संस्था के महा सचिव डाॅ. जे. के डांग , डाॅ एम. पी. गुप्ता, अजीत सिंह, डाॅ ए. एल. खुराना , एस. एस. लाठर, करतार सिंह , एस. पी. चौधरी एवं डाॅ मनवीर ने उन्हें क्लब की तरफ से एक पौधा और शाॅल देकर सम्मानित किया। महिला सदस्यों ने उन्हें फूलों का गुलदस्ता भेंट किया और उन पर फूलों की वर्षा कर सभी सदस्यों ने हैप्पी बर्थडे टू यू का गीत गाते हुए उनके अच्छे स्वास्थ्य और उनकी दीर्घायु की कामना की। महिला सदस्यों ने उनको तिलक भी किया।
भारत विभाजन में कराची से पहुंचे थे गुजरात
सरदाना जी ने इस अवसर पर अपने अनुभव सांझा किए। देश के विभाजन के समय वे 16 साल की उम्र में कराची से समुद्री जहाज़ के द्वारा शरणार्थियों के एक दल में गुजरात पहुंचे थे। “सब कुछ सामान्य था। किसी को यकीन ही नहीं आ रहा था कि उन्हें अपने पुरखों के घर छोड़ कहीं और जाना पड़ेगा। फिर कुछ हिंसक घटनाएं हुई और सरकार ने सभी हिन्दू सिखों को कराची छोड़ गुजरात जाने के लिए कहा और सभी चल पड़े, अपने घरों को ताले लगा कर चाबी पड़ोसियों को देकर। उम्मीद जल्द लौटने की थी, पर यह तो स्थाई विस्थापन था। गुजरात से आगरा आए। पिता मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस में थे। बाद में सरदाना भी एम ई एस में ही भर्ती हुए और इंडियन एयर फोर्स के कई स्टेशनों पर काम किया। उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश व दिल्ली सहित अनेक राज्यों में काम किया। दार्जिलिंग में एवरेस्ट विजेता तेनजिंग से मिले। बंगाल में कलाईकोंडा एयरफील्ड पर पाकिस्तानी हमले को देखा। एकमात्र पुत्री सुनीता की शादी सरदाना जी ने एयरफोर्स के अपने एक मित्र के पुत्र नवीन मेहतानी से करा दी जो मैरिन इंजीनियर थे और समुद्री जहाज़ों पर ही दुनिया में घूमते रहते थे। सुनीता और नवीन के एक बेटा मन्नन और एक बेटी तारिणी हैं जो जॉब कर रहे हैं।
ऐसे हुआ तबीयत में सुधार…
पिता सरदाना की देखभाल पुत्री सुनीता मेहतानी करती हैं पर उनके जन्मदिन पर पूरा परिवार इकट्ठा होता है। वानप्रस्थ संस्था में वे लंच का इंतजाम करती हैं और संस्था के सदस्य बड़े उत्साह के साथ गीतों और गजलों से उन्हें बधाई देते हैं। वे खास सदस्यों से खास गीतों की फरमाइश भी करते हैं और खुद कोई बांग्ला या इंग्लिश भाषा का गीत सुनाते हैं।
सुनीता मेहतानी कहती हैं कि कुछ वर्ष पहले उनके पिता सरदाना जी की तबियत काफ़ी खराब रहती थी। “हर दूसरे तीसरे दिन उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना पड़ता था। जबसे वे वानप्रस्थ में आए हैं, उनकी तबियत में बड़ा सुधार हुआ है। अब महीने दो महीने में डॉक्टर से मिलना होता है।”
“सरदाना जी बुधवार व शुक्रवार को वानप्रस्थ की निर्धारित बैठक के लिए 9 बजे ही तैयार होकर बैठ जाते हैं और मुझे कहते हैं कि आज जाना है, जल्दी तैयार हो जाओ।”
“किसी और दिन इनको उदास देखती हूं, तो किसी मित्र को फोन कर कहती हूं, डैडी आपको याद कर रहे हैं। आप के साथ चाय पीने के लिए आना चाहते हैं। मित्र स्वाभाविक रूप से तुरंत बुला लेते हैं और फिर चाय पर गपशप से उदासी फुर्र हो जाती है।”
हरियाणवी लोकगीतों से बंधा समां
वानप्रस्थ में सरदाना जी के जन्मोत्सव में प्रो दीप कौर पुनिया ने हरियाणा के सावन के लोकगीतों के मुखड़े पेशकर समा बांध दिया। प्रो पुष्पा खरब, सुनीता जैन, संतोष डांग, इंदु गहलावत व कमला सैनी ने उनका साथ दिया। सरदाना जी की फरमाइश पर दूरदर्शन के पूर्व समाचार निदेशक अजीत सिंह ने फैज़ अहमद फैज़ की मशहूर ग़ज़ल, हम देखेंगे गाकर पेश की। आलम यह था कि सभी श्रोता भी स्थायी टेक पर लगातार साथ देने लगे। प्रो पुष्पा खरब, प्रो राज गर्ग, प्रो स्वराज कुमारी, वीना अग्रवाल, प्रो रामकुमार सैनी, करतार सिंह व एस पी चौधरी ने विभिन्न रंग के गीतों और ग़ज़लों की प्रस्तुति दी। प्रो सुनीता श्योकंद, सुनीता मेहतानी, प्रो सुनीता जैन तथा वानप्रस्थ के जनरल सेक्रेटरी जे के डांग ने सभा का संचालन किया। महतानी परिवार की और से सभी सदस्यों के लिए दोपहर के भोजन की व्यवस्था की गई। इस कार्यक्रम मे 90-से अधिक सदस्यों ने भाग लिया।