WhatsApp Group Join Now

बीज से तैयार खजूर के पौधों में नर व मादा की पहचान के लिए पौधा उगाने के तीन चार वर्ष तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। बल्कि अब पौधा उगते ही उसकी पहचान की जा सकेगी। सेवानिवृत्त प्रोफेसर पुष्पा खरब की देखरेख में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में किसानों के लिए इस अति महत्वपूर्ण विधि का सर्जन किया जा चुका है।
यह जानकारी विश्वविद्यालय में बायोटेक्नोलॉजी विभाग से सेवानिवृत्त प्रोफेसर व विभागाध्यक्ष डॉ पुष्पा खरब ने आज सीनियर सिटीजन क्लब हिसार के प्रांगण में वानप्रस्थ हिसार द्वारा आयोजित “
कम लागत से खजूर की खेती” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए दी।

बीज से पाैधा उगाने की विधि को अपनाते हैं किसान

वानप्रस्थ की गोष्ठी को संबोधित करते हुए डा: पुष्पा खरब

डॉ पुष्पा ने बताया कि सिंधु और मेसोपोटामिया सभ्यताओं के काल से किसानों के लिए लाभकारी रहा पौष्टिक फल वाला खजूर का वृक्ष के पौधों में नर और मादा फूल अलग-अलग पौधों पर आते हैं। एक बीजपत्री होने के कारण खजूर के पौधे कायिक प्रवर्धन के अन्य तरीकों जैसे कलम बांधना (ग्राफ्टिंग) चश्मा चढ़ाना (बडिंग) गुटी व कलम द्वारा तैयार नहीं कर सकते । इस वृक्ष के पौधे को तीन विधियों बीज, सकर्स और ऊतक संवर्धन ( टिशू कल्चर ) द्वारा उगाया जा सकता है। टिशू कल्चर और सकर्स विधि से पौधे की गुणवत्ता तो मिलती है किंतु टिशू कल्चर से तैयार पौधे की लागत अधिक होती है और सकर्स विधि से पौधे की उपलब्धता बहुत कम हो पाती है, इसलिए किसान बीज से पौधा उगाने की विधि को अपनाते हैं।

नर-मादा खजूर के पौधे की पहचान विधि हुई पेटेंट

किंतु बीज से उगे खजूर के पौधे की नर या मादा की पहचान 4 से 5 वर्ष बाद फूल आने पर ही हो पाती है। पौधों के डीएनए की गुणन उपरांत विशेष पद्यति की पहचान कर इस नई विधि से बीज से उगाए पौधे के जन्म पर ही नर या मादा की पहचान की जा सकती है। इससे किसान पौधा उगाते समय ही वांछित संख्या में मादा और नर पौधे प्राप्त कर सकता है। उन्होंने बताया कि इस विधि को पेटेंट भी करवा लिया गया है।

हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में की जा सकती है खजूर की खेती

डॉ पुष्पा खरब ने बताया कि खजूर शुष्क जलवायु में उगाया जाने वाला प्राचीनतम फलदार वृक्ष है। तुर्की-पर्शियन- अफगान पहाड़ियों और इराक किरकुक- हाईफा समुद्री तट के इस वृक्ष की खेती दक्षिण हरियाणा, राजस्थान और गुजरात सहित भारत के कई भागों में की जा सकती है। खजूर की खेती ऐसे क्षेत्रों में भी की जा सकती है जो बहुत अधिक लवणीय हैं या जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है या सिंचाई के लिए केवल लवणीय जल उपलब्ध है। ऐसी भूमि जो अन्य फसलों के लिए उपयुक्त नहीं है वहां खजूर की खेती की जा सकती है।

संगोष्ठी में ये रहे शामिल

संगोष्ठी में सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ सुनीता श्योकदं ने संगोष्ठी का संचालन किया। बताया कि खजूर सबसे अधिक पौष्टिक फलों में से एक है, विश्व भर में खाद्य पदार्थों की मांग में उत्तरोत्तर वृद्धि के द्रष्टिगत इसकी मांग में काफी बढ़ोतरी की सम्भावना है। डॉ. खरब ने विषय का विस्तृत परिचय दिया।
संगोष्ठी में दक्षिण हरियाणा के पूर्व चीफ़ कॉम्यूनिकेशन आफ़िसर धर्म पाल ढुल्ल , डॉ इंदु गहलावत, वानप्रस्थ के महासचिव डॉ. जे के डांग, डॉ. ए एल खुराना एवं सतीश कालरा सहित वानप्रस्थ के लगभग 40- सदस्यों ने चर्चा में भाग लिया।

इसे भी पढ़ें- बच्चों पर अच्छे नंबरों का दबाव तो नहीं बन रहा आत्महत्या की वजह

WhatsApp Group Join Now

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *