अगर में यह कहूं कि ज्यादातर माता-पिता जीते ही अपने बच्चों के लिए हैं तो शायद यह गलत नहीं होगा क्योंकि ज्यादातर माता-पिता यह कहते होंगे कि हम तो तुम्हारे लिए कर रहे हैं हम तो तुम्हारा बेहतर भविष्य चाहते हैं ऐसे में किसी माता-पिता का जिगर का टुकड़ा आत्महत्या कर ले क्योंकि वह पढ़ाई का प्रेशर झेल नहीं पाया या उस पर मानसिक दबाव ज्यादा था ऐसे में उस माता-पिता की हालत क्या होगी सोचकर ही सिहरन हो जाती है । माता-पिता यही कहते होंगे कि हमारा बच्चा वापस आ जाए हम उससे कुछ नहीं कहेंगे ।
विद्यार्थी क्यों करते हैं आत्महत्या
विद्यार्थी आत्महत्या ना करें। उसका अच्छा कैरियर बने, इसके लिए यह जानना जरूरी है कि विद्यार्थी आत्महत्या करते क्यों है। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो पर नजर डालें तो पता चलता है कि 10000 से ज्यादा बच्चे हमारे देश में आत्महत्या कर लेते हैं 2017 में 9950 स्टूडेंट्स ने आत्महत्या कर ली 2018 में 10159 और 2019 में 1335 बच्चों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली क्योंकि उनके ऊपर पढ़ाई का प्रेशर था। विभिन्न शोधों के आधार पर जानते हैं कारण-
असफलता या आपका दबाव
- कम अंक- स्टडीज के मुताबिक 30 परसेंट बच्चे फेल होने पर आत्महत्या कर लेते हैं और उनमें से कुछ बच्चे ऐसे हैं जो अपने साथी से कम अंक आने पर आत्महत्या करते हैं।
- परिवार का दबाव- एक और दूसरा सबसे बड़ा कारण सामने आया है कि बच्चा पोस्ट कैरियर चॉइस कुछ और करना चाहता है, लेकिन मां-बाप उसे किसी और क्षेत्र में भेजना चाहते हैं। ऐसे में उसपर दबाव बनाया जाता है।
- एजुकेशन सिस्टम- हमारे देश में आईआईटी की 12000 सीटें हैं और हर साल 12- 14 लाख बच्चे इन सीटों के लिए फाइट करते हैं। एनआईटी की जोड़ें तो 20000 और सीटें हैं। उनके ऊपर सफल होने का कितना दबाव है आप समझ सकते हैं। इसी तरह नीट का एग्जाम में लीजिए तो करीब 40,000 सरकारी सीटें हैं और 15 लाख से ज्यादा बच्चे डॉक्टर बनने की चाहत में सरकारी सीटों पर सिलेक्शन लेने की चाहत में तैयारी करते रहते हैं। वहीं एडमिशन मिलता है सिर्फ 40,000 को। अगर सिविल सर्विस की बात करें तो 1000 सीटों के लिए 6 से 7 लाख विद्यार्थी बैठते हैं और सफल होते हैं 1000। ऐसे में आप सोचिए कितना प्रेशर बच्चों पर होता है। ऐसे में इस एजुकेशन सिस्टम में सफल होने का दबाव बच्चों पर हर साल बढ़ रहा है। हर माता-पिता चाहते हैं कि जिसके बच्चे ने साइंस ली है वह डॉक्टर बन जाए या आईआईटी में सफल होकर बढ़िया इंजीनियर बन जाए। लेकिन हम भूल जाते हैं कि सीटें तो लिमिटेड है।
- चौथा कारण ऐसा है कि जिसमें बच्चा गुमसुम हो जाता है बता ही नहीं पाता और उसकी मानसिक स्थिति ऐसी हो जाती है धीरे-धीरे दबाव में आकर सुसाइड कर लेता है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार यही चार मोटे तौर पर कारण है अब इसका समाधान क्या है। इसका समाधान विद्यार्थी के माता पिता व गुरु के पास है, जिनसे वह शिक्षा ग्रहण करता है। माता पिता अपने बच्चों के भविष्य की चाहत में यह भूल जाते हैं कि बच्चे का लेवल क्या है। बच्चे की चाहत क्या है। बच्चा किस लेवल तक मेहनत कर सकता है। हम यह मान लेते हैं हर बच्चा फर्स्ट आने के लिए बना है। पर ऐसा नहीं है माता-पिता को अपने बच्चों को सफल बनाने की जरूरत है ना कि फर्स्ट आने की। गुरु भी अपने बच्चों को मेहनत करना सिखाए अगर बच्चे मेहनत करना सीख जाएंगे तो हर जगह सफल होंगे। हम सब यही चाहते हैं कि हमारा बच्चा सफल हो। सफलता से पहले वह अच्छा इंसान बने और मेहनती बने ताकि बच्चे हर प्रॉब्लम को फेस करना सीखें, आत्महत्या करना नहीं।
परिचर्चा
माता पिता बच्चों के लिए बनें दोस्त
अशोक प्रजापति
प्राथमिक अध्यापक
राजकीय प्राथमिक पाठशाला मोहम्मदपुर, जिला महासचिव
राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ हरियाणा 421 जिला गुरुग्राम
आज के इस कंप्यूटर युग में शिक्षा का जो व्यापारीकरण हो रहा है, उससे कहीं ना कहीं बच्चों पर भी मानसिक दबाव पढ़ रहा है। परंतु आज यह पढ़ाई का जो दबाव है वह हमारे घर से ही शुरू होता है। आज सभी माता-पिता अपने बच्चों को कक्षा 9वीं से ही इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य कोर्सों के लिए तरह तरह के प्रयास करते हैं। तरह-तरह की कोचिंग लेने पर बच्चों को विवश कर देते हैं। छठी कक्षा की लड़की द्वारा द्वितीय स्थान पर आने पर भी आत्महत्या कर लेना बहुत ही विचारणीय विषय है। क्योंकि पहली से आठवीं कक्षा तक तो बच्चों को फ्री माइंड, खेल खेल में और हंसते खेलते शिक्षा दी जानी चाहिए। माता पिता एक दोस्त बनकर ही बच्चों को शिक्षा के दबाव से मुक्त कर सकते हैं।
दबाव बच्चों के विकास में बाधक
डॉ. प्रवीन यादव
सहायक प्रोफेसर, राजकीय महाविद्यालय
सिद्धरावली, गुरुग्राम
एक दूसरे से आगे निकलने का दवाब आज के माता-पिता अपने बच्चों पर बना रहे हैं। जो बच्चों के विकास में बाधक है। पांच साल में सीधा प्रथम दर्जे में प्रवेश होना चाहिए। जीवन जीने का नाम है, इसे खुलकर जिएं। प्रथम श्रेणी, द्वितीय महज मन का भ्रम है। अनावश्यक दवाब से बचे।
माता पिता बच्चों के लिए निकालें समय
अल्का, सेवानिवृत- एससीईआरटी, भाषा विभाग
बस सभी माता-पिता से यही कहना चाहूंगी कि अपने बच्चों पर नंबर का दबाव ना बनाएं। बच्चों का सर्वांगीण विकास होना जरूरी है। बार-बार बच्चों पर नंबरों का दबाव हम देते हैं तो बच्चा मानसिक रूप से दबाव में आकर परेशान हो जाता है। मेरे विचार से बच्चे के अंदर हर तरह का कौशल होना चाहिए। समय-समय पर अध्यापक व माता पिता को बच्चे से शारीरिक विकास और मानसिक विकास के बारे में चर्चा करनी चाहिए। बच्चे के लिए समय भी निकालना चाहिए। जब बच्चा किसी से बात नहीं कर रहा है तो माता-पिता को समय निकाल कर उससे हर विषय पर बात करनी चाहिए।
Written by:
RAKHI SHARMA, Teacher