देश में महिलाओं को बराबर का हक मिलने लगा है। महिलाएं हर क्षेत्र में आगे हैं। डॉक्टर से लेकर इंजीनियर तक में सबसे ज्यादा संख्या महिलाओं की होती है। यानि मान सकते हैं कि महिलाओं को अब आर्थिक सहायता के लिए किसी पर आधारित रहने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन यहां आवश्यकता अब महिलाओं द्वारा परिवार को आर्थिक सहायता देने की है। दरअसल हम आगे बढ़ चुके हैं लेकिन कुछ बातें, रीतिरिवाज, परंपराएं, अवधारणाएं पीछे ही रह गई हैं। इस लेख में हम इन वजहों को जानने का प्रयास करेंगे।
पुरुषों के नाम है आर्थिक जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी
देश में प्रारंभ से ही परिवार की आर्थिक जरूरतें पुरुषों द्वारा पूरी की जाती रही हैं। जिसमें महिलाओं की कोई भागीदारी नहीं होती थी। महिलाएं घर की जिम्मेदारी संभालती थी। जिसमें रसोई का काम, कपड़े, बच्चों को पढ़ाना आदि घरेलू कार्य महिलाओं को सौंपे गए। लेकिन महिलाओं ने अपने सम्मान के लिए बाहर निकलना शुरू किया। अब महिलाएं आर्थिक जरूरतों की ओर से मजबूत हैं। लेकिन घर में आर्थिक सहायता अभी भी पुरुषों के नाम हैं। ऐसा क्यों?
महिलाओं का घर में काम हुआ कम
महिलाओं के नौकरी जाने पर महिलाओं की घर की जिम्मेदारियां पहले से कम हो गई हैं। जिनमें घर का पुरुष ही अपनी पत्नी की मदद करता है। यानि अब घर का काम दोनों मिलबांटकर करते हैं। नौकरी पर साथ जाते हैं। ऐसे में परिवार की जिम्मेदारियों को पूरा करने की जिम्मेदारी भी दोनों की है। अधिकतर महिलाएं इस बात से सहमत भी हैं। लेकिन अभी भी बहुत से परिवारों में महिलाओं को बाहर काम करने की आजादी तो है लेकिन घर के काम की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर है। लेकिन यदि घर के काम की जिम्मेदारी भी बांट ली जाए तो महिलाएं आर्थिक सहायता कर सकती हैं।
आर्थिक जिम्मेदारियां बांटने से खुशहाल रहता है परिवार
अगर पति पत्नी आर्थिक जिम्मेदारियों को भी बांटते हैं तो परिवार में भी खुशहाली रहती है। क्योंकि अधिकतर परिवारों में क्लेश का कारण पति द्वारा आर्थिक जरूरतों को पूरा नहीं कर पाना होता है। ऐसे में अगर महिलाएं भी उनकी आर्थिक सहायता करें तो पुरुषों में बोझ भी कम होगा। परिवार में खुशी का माहौल बना रहेगा।