शादी के बाद शाही कपड़े पहनना, दुल्हनों की तरह हर रोज अपने पति के लिए सज-धज के रहना शायद हर लड़की का सपना होता है। शादी के बाद उसे यह सब पहनने का मौका भी मिलता है। हर रोज सजने सवरने के लिए कहा जाता है। लेकिन जैसे ही लड़की मायके जाती है तो तुरंत अपने पुराने कपड़े पहनना चाहती है, वह अपने पुराने कपड़ों में ही सुकून महसूस करती है। आखिर एसा क्यों। आज इस लेख में इस बात पर ही मंथन का प्रयास करेंगे
अनजानी बंदिशों का हो जाती हैं शिकार
ससुराल का एक दम खुला माहौल है। सिर पर पर्दा रखने की जरूरत नहीं है। किसी से घूंघट भी नहीं करना है। जरूरी नहीं कि आप हर दिन साड़ी पहनो। सूट भी पहन सकते हो। लेकिन देखने में सुंदर सूट होना चाहिए। अच्छे से स्त्री की हुई हो। ये वो अनजानी बंदिशें होती हैं जिन्हें हम समझ ही नहीं पाते। खुला माहौल हो या फिर घूंघट की परंपरा, बंदिशें महिलाओं पर जरूर लगी होती हैं। और जैसे ही कोई लड़की वापस अपने मायके पहुंचती है तो तुरंत अपने पुराने कपड़ों में एक खुलापन महसूस करती है। वहां बेशक आजादी मिली हो लेकिन ये खुलापन नहीं मिलता जो मायके में नहीं होता। इसलिए ससुराल कभी मायका नहीं बन सकता, वह ससुराल ही रहता है।
बंदिशों को बयां करना होता है मुश्किल
दिल्ली की पिंकी ने बताया कि जब वह शादी से पहले ऑफिस से लौटती थी तो सिर्फ खाना खाती थी और अपने काे समय देती थी। लेकिन शादी के बाद जॉब से लौटते ही खाना बनाती है। सबको खिलाती है। उसके बाद सारा रसोई का काम करती है और फिर सोती है। जहां मायके में सुबह उठकर सिर्फ तैयार होकर जाने का काम होता था, जैसा कि लड़के जिंदगी भर करते हैं।लेकिन ससुराल में सबके टिफिन पैक करने होते हैं, बच्चों को स्कूल भेजना, घर की सफाई आदि के बाद ऑफिस जाती है।