जिसमें कुछ खास है वो अजूबा है। दुनिया में ऐसे सात अजूबे हैं और हमारे पास हैं आठ। हम ऐसे आठ दोस्तों की बात कर रहे हैं जिनके कारनामों ने उन्हें सबसे अनोखा बना दिया है। दरअसल जब ये यार मिलते हैं तो कोई पार्टी या मस्ती नहीं होती। ये किसी फाइब स्टार होटल या रेस्तरां नहीं जाते। ये गाड़ियों में बैठकर शहर में गेड़ियां नहीं मारते हैं। ये वो दोस्त हैं जो हर दिन झुग्गियों में छुपी मुस्कान की तलाश में निकलते हैं। और इनकी यही तलाश इनकी पहचान बन गई है। जहां जरूरतमंदों पर मुसीबत आती है तो ये हाजिर हो जाते हैं। आइए हम दिखाते हैं इनकी अनौखी कहानी…
जानें आलीशन मकानों से झुग्गियों तक के सफर की कहानी
छुपी मुस्कान ग्रुप की नीलम सुंडा ने बताया कि मेरे पास सब था। पति का अच्छा बिजनेस, बच्चे अच्छे संस्थानों में पढ़ रहे थे। लेकिन आलीशान मकान, शाही कपड़े होने के बावजूद बस मेरे पास मानसिक शांति नहीं थी। मैं हर वक्त खुद को अशांत महसूस करती। जब मेरे बड़े बेटे और जिठानी ने मुझे लोगों की मदद की सलाह दी तो मेरा सामना इन झुग्गियों के निवासियों से हुआ। जहां अनगिनत चेहरे थे जिनपर झुर्रियां थीं, हाथों में रेखाओं का नामोनिशान नहीं, तन पर पूरे कपड़े नहीं, मनुष्य का शरीर लेकिन ज्ञान नहीं…। बस वहीं से इन झुग्गियों के सफर की शुरुआत हुई। और एक-एक कर ऐसे दोस्त जुड़ते गए जिनकी खुशी इनसे जुड़ी हुई थी।
इसे भी पढ़ें- Exam में पूछा – अगर आप समाज सुधारक होते तो क्या करते? बच्चे का जवाब हो रहा वायरल
इन तरह करते हैं लोगों की मदद
नीलम सुंडा ने बताया कि वह हर रोज अपने दोस्तों के साथ झुग्गियों में जाती हैं। पूरा ग्रुप अलग-अलग बंट कर महिलाओं और बच्चों काे पढ़ाता है। महिलाओं को सिलाई सिखाते हैं। ताकि वे खुद का रोजगार शुरू कर सकें। बच्चों को स्कूल में एडमिशन कराना। किताबें बांटना, पैसों की मदद करना। घायलों को अस्पताल पहुंचाना, इलाज कराना, गरीब लड़कियों की शादी कराना जैसे काम करते हैं। झुग्गी वाले इन्हें मसीहे के तौर पर देखते हैं।
नहीं लेते किसी से फंड
इस समूह की खास बात है कि ये किसी से भी फंड एकत्रित नहीं करते हैं। इस समूह सभी महिलाएं खुद का काम करती हैं। उसी राशि में से सभी की मदद करती हैं। नीलम बताती हैं कि कई बार उन्हें फंड लेने के ऑफर आए। लेकिन उन्होंने यह ठान लिया है कि जब तक खुद से हो पाएगा वे बिना किसी फंड के ही इस काम करेंगी। वे मानती हैं कि झुग्गी वाले भी समझते हैं कि एनजीओ से आने वाले लोग दस रुपये का कुछ खिलाते हैं और 100 रुपये कमाकर चले जाते हैं। मैं यहां चाहे दस रुपये ही खर्च कर के जाऊ लेकिन मानसिक शांति लेकर और मुस्कान देकर जाना चाहती हूं।
ये हैं आठ दोस्त
- नीलम सुंडा
- ज्योति ग्राेवर
- नीना चावला
- युविका सिंह
- सुमन बतरा
- मन्नू बजाज
- उर्मिला बुरा
- आशीष लावट
झुग्गियों मे ही मनाते हैं त्याैहार
यह समूह अपना हर त्योहार झुग्गियों में ही सेलिब्रेट करता है।। होली पर बच्चों के साथ खेलते हैं। दिवाली पर झुग्गियों को सजाते हैं। स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगे लहराना इनका पसंदीदा काम है।
वृद्धाश्रम खोलने का उद्देश्य
पनीलम ने बताया कि वह आगे चलकर एक वृद्धाश्रम शुरू करना चाहती हैं। वह इस पर काम कर रही हैं। जल्द ही इसकी रूपरेखा भी तैयार करेंगी। वह बताती हैं कि छुपी मुस्कान की तलाश ने उन्हें मानसिक शांति दी है। अब वह अपने जीवन को धन्य समझती हैं।