आप किसी रिश्तेदार की मौत पर शोक सभा में जाते हैंं। वहां चारों तरफ गम का माहौल है। घर के सभी लोग जमीन पर बैठकर विलाप कर रहे हैं, ऐसे में आप भी भावुक हो जाते हैं और चप्पल उतार कर नजदीक बैठ जाते हैं। परिवार के सभी लोगों को सांत्वना देते हैं। ऐसा करते-करते काफी समय हो जाता है फिर आप घर जाने के बारे में सोचते हैं। फिर आप खड़े होते हैं और अपनी चप्पलों पर नजर डालते हैं। आप देखते हैं की आपकी चप्पलें गायब हो गई हैं।
घर में गम का माहौल है, इसीलिए आप किसी को बोल भी नहीं पा रहे हैं, आप चारों तरफ देख रहे हैं कहीं कोई आप की चप्पलें पहनकर तो नहीं चला गया। आपकी चप्पल कहीं नजर नहीं आ रही हैं। आपके साथ साथ कुछ और लोग भी आते हैं और देखते हैं कि उनकी भी चप्पलें गायब हो चुकी हैं। सभी एक दूसरे से बातें कर रहे हैं कि चप्पलें हैं कहां… सभी डर भी रहे हैं कि कहीं भूत ने चप्पलें गायब तो नहीं की।
खुद को सुरीला बताने वाली दुल्हनों का शादी के एक दिन पहले ही बैठ जाता है गला
जी हां यह एक सच्ची घटना है कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं है। यूपी के एक गांव रुस्तमपुर की कहानी है। ठाकुर अशोक कुमार की बेटी का देहांत हो गया था। आसपास के सभी लोग शोक सभा में शामिल होने के लिए आते हैं। परिवार के सभी लोग पहले से ही गम में डूबे हुए होते हैं, सभी का ध्यान अपनी बेटी की तरफ था और कहीं ध्यान भी नहीं था। आसपास के जो भी लोग आए थे वह सभी अपनी अपनी चप्पलें उतार कर जमीन पर बैठकर विलाप करने लगे। वहां ऐसा कोई नहीं था जिसकी आंखों से आंसू ना आ रहे हो। बहुत बड़े दुख की घड़ी थी फिर भी सभी लोग एक दूसरे को सांत्वना दे रहे थे। विधाता की करनी के आगे हमारी एक नहीं चलती कुछ समय बीतने के बाद जब कुछ लोग चलने को तैयार हुए तो देखते हैं जहां चप्पलें उतारी थी वहां चप्पलें थी ही नहीं पर लेकिन वह वहां खड़े होकर चारों तरफ देख रहे हैं आखिरकार चप्पल कहां गई।
अगर आप भी किसी कोंडोलेंस में जाते हैं और आप की अचानक से चप्पलें गायब हो जाए, तो आपको भी लगेगा कि कहीं भूत ने आप की चप्पलें गायब तो नहीं की। तभी परिवार के एक सदस्य की नजर वहां खड़े लोगों पर पड़ी और पूछा क्या बात है, तब उन लोगों ने बताया हमारी चप्पलें गायब हैं सभी लोग चकित हो जाते हैं। चप्पलें कहां गई सभी लोग चप्पलें ढूंढ रहे हैं। फिर भी चप्पले नहीं दिख रही सभी सोच में पड़े हुए हैं यह हो क्या रहा है । कुछ टाइम बाद घर के किसी सदस्य ने अपना फ्रिज खोलकर देखा तो वहां पर सभी लोगों की चप्पलें मिली।
दरअसल उसी परिवार की दो छोटी-छोटी बच्चियों ने यह काम खेल खेल में कर दिया। वह दोनों इतनी छोटी थी कि उन्हें पता ही नहीं था कि हम कर क्या रहे गए हैं, और वह दोनों इतनी छोटी थी कि बोल भी नहीं सकती थी आज वह दोनों बच्चियां ग्यारहवीं और बारहवीं में हैं। यह कहानी सच्ची और मजेदार है और सबसे ज्यादा उटपटांग भी है।