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भारतीय परिधानों में साड़ी का कोई जबाव नहीं। देश के प्रत्येक हिस्से में साड़ी महिलाओं का मुख्य पहनावा रहा है। कुछ समय पूर्व तक उत्तर भारत में महिलाओं के लिए एकमात्र परिधान साड़ी रहा है। जब भी महिलाओं ने दूसरे कपड़े पहनने का प्रयास किया तो उन्हें अनुचित बताकर साड़ी की सलाह दी गई। यदि सूट से मुकाबला किया जाए तो साड़ी में ज्यादा अंग दिखाई देते हैं। लेकिन इसके बाद भी महिलाओं को साड़ी से सूट पहनने में ही सालों का वक्त निकल गया। इस लेख में हम महिलाओं के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे कि आखिर इसका क्या कारण रहा और क्या सही है।

महिलाओं की पसंद से ज्यादा थोपी गई हैं चीजें

महिलाओं के वस्त्रों की बातें हों, या काम की। चारों तरफ से चीजें थोपी गई हैं। लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में यह जरूर गलत हो सकता है। लेकिन कुछ सालों पहले तक जींस की बात तो दूर महिलाओं को सलवार कमीज पहनने से भी रोका गया। मैं उत्तर प्रदेश से हूं। यहां औरतें सिर्फ साड़ी पहनती थी। घर की महिलाएं ही सलवार कमीज नहीं पहनने देती थी। हालांकि अब समय बदल गया है।- अंशु जादौन

काम करने में होती है दिक्कत

कुछ समय के लिए साड़ी पहनना अलग बात और दिन रात साड़ी पहनना व काम करना अलग बात है। महिलाओं के लिए इस 5 से 6 गज के कपड़े को लपेट कर काम करना कभी आसान नहीं रहा है। लेकिन पता नहीं क्याें महिलाओं यानि घर की बहु पर साड़ी पहनने का अनदेखा दबाव रहा है।– शालिनी

महिला पर निर्भर करता है कि वह क्या पहने

महिलाओं को क्या पहनना चाहिए, यह पूरी तरह महिलाओं पर निर्भर होना चाहिए। लेकिन समाज में ऐसा नहीं हुआ। जबरन अधिकार छीने गए। हालांकि सिनेमा जगत का प्रभाव हो या वेस्टर्न अंदाज की वजह से महिलाओं के परिधान में अनावश्यक बदलाव हुए हैं। पहले 5 गज की साड़ी लपेटी जाती थी और अब कपड़े कुछ इंचों में ही सिमट कर रह गए हैं। नेहा चौहान

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