आजकल भी अधिकतर घरों में पीरियड्स के दौरान लड़कियां- महिलाएं न खाना बना पाती, न घर से बाहर निकल पातीं, न पूजा-पाठ कर पातीं। पीरियड्स आने पर लड़कियों की िजंदगी का मानो एक सप्ताह के लिए ठहर गई हो। पढ़ाई पर तो जैसे ग्रहण ही लग जाता। लेकिन अब जमाना बदल रखा और पीरिड्यस को लेकर झिझक धीरे -धीर दूर हो रही है । टेक्नोलॉजी की वजह से भी पीरियड्स को लेकर बने माइंडसेट को बदल दिया है। अब पीरियड्स ट्रैकर ऐप के जरिए लड़कियां माहवारी शुरू होने से लेकर अगली माहवारी तक सभी रिकॉर्ड रख रही हैं।
रिकॉर्ड के आधार पर अगले पीरियड की डेट पर रिमाइंडर भेजता है चैटबॉट पर
कई ऐसे ऐप मिलेंगे जो न केवल पीरियड को ट्रैक करते हैं बल्कि मूड और वजन और हॉर्मोनल बदलावों के बारे में भी जानकारी देते है। इसमें से एक है पीरियड ट्रैकर । इस एप किस तारीख को पीरियड आएगा, कब खत्म हुआ, सिम्प्टम क्या रहे, मेन्सट्रुल ब्लड फ्लो कैसा था सब पता चल रहा है। पीरियड ट्रैकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए सेहत पर नजर रखता है। यूजर को पीरियड्स के बारे में सारी डिटेल देनी होती है। चैटबॉट इसका रिकॉर्ड रखता है और इसके आधार पर अगले पीरियड की डेट पर रिमाइंडर भेजता है।
राजस्थान में पीरियड्स को लेकर चल रहा ‘चुप्पी तोड़ो’ आंदोलन
सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि केंद्र और राज्य सरकारें बताएं कि मेन्स्ट्रुअल हाईजीन मैनेजमेंट को लेकर उसकी पॉलिसी क्या है। राजस्थान में भी पीरियड्स को लेकर ‘चुप्पी तोड़ो’ आंदोलन चल रहा है। वही में स्कूलों में पीरियड्स को लेकर नई पहल शुरू हुई है। झारखंड के स्कूलों में जहां ‘पीरियड्स लैब’ बनी हैं, वहीं असम में आठवीं और नौवीं कक्षा की छात्राओं को ‘मेन्स्ट्रुअल कार्ड’ दिए जा रहे हैं।
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झारखंड के स्कूलों में खुली पीरियड्स लैब
झारखंड के स्कूलों में मेन्स्ट्रुअल हाईजीन को ध्यान में रखते हुए पीरियड्स लैब की शुरुआत की गई है। लैब में पेट में ऐंठन होने पर हॉट वाटर बॉटल से सिंकाई कर आराम मिलता है। दर्द ज्यादा होने पर दवा का भी इंतजाम है। झारखंड के आदिवासी बहुल जिले चाईबासा से 64 किमी दूर ओडिशा के बॉर्डर पर एक कस्बा है नोवामुंडी। यहां के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में खुली मेन्स्ट्रुअल लैब ने छात्राओं का रूटीन बदल दिया है।