जल्दी-जल्दी नाक बहने की समस्या से बहुत लोग परेशान हैं। इसका मुख्य कारण इम्युनिटी का कमजोर होना है। डॉक्टर्स भी जुकाम की दवा दे देते हैं। लेकिन कुछ दिनों बाद ही दोबारा से नाक बहने की समस्या शुरू हो जाती है। इसे हे फीवर कहा जाता है। इसमें नाक से लगातार पानी निकलता रहता है और साइनस की प्रोब्लम बढ़ जाती है। इस दौरान आंखें खुजलाने लगती हैं। बुखार महसूस होने लगता है। छाती भारी महसूस होती है। इसमें सर्दी-खांसी के सभी लक्षण नजर आते हैं। इसमें भी परेशान करते हैं। डॉक्टर्स द्वारा इसे वायरल इंफेक्शन माना जाता है। अब तक इसका सटीक कारण पता नहीं चल सका है कि आखिर जल्दी-जल्दी नाक क्यों बहने लगती है। लेकिन जल्द ही इसके इलाज का दावा किया जा रहा है।
बैड बैक्टीरिया हैं इसका कारण
नाक में रहने वाले कुछ अवांछित बैक्टीरिया इसके कारण हैं। बता दें कि नाक में बैड और गुड बैक्टीरिया दोनों तरह के होते हैं। अच्छे स्वास्थ्य के लिए बैक्टीरिया, वायरस और फंगस का संग्रह भी महत्वपूर्ण है। बहुत से बैक्टीरिया हमारे इम्यून सिस्टम को सपोर्ट देते हैं। गुड बैक्टीरिया की डिमेंशिया, हार्ट डिजीज और इंफ्लामेटरी बावोल सिंड्रोम से बचाने में भी अच्छी भूमिका है। लेकिन बहुत सी बीमारियों से बचने के लिए गुड और बैड बैक्टीरिया का संतुलन होना जरूरी है। इनका संतुलन बिगड़ने यानि बैड बैक्टीरिया की संख्या बढ़ने पर यह इम्यून सिस्टम प्रभावित करते हैं। खास बात है कि ये बैक्टीरिया नाक में अपना घर बनाने लगते हैं जिसके कारण हे फीवर होता है।
प्रोबायोटिक से होगा बैड बैक्टीरिया होगा खत्म
ग्लोबल डायबेट्स कम्यूनिटी की रिपोर्ट के अनुसार नाक में गुड और बैड बैक्टीरिया एक साथ रहते हैं। ऐसे बैक्टीरिया भी जो हे फीवर फैलाने का काम करते हैं। ऐसी स्थिति में ऐसी दवा की जरूरत होती है जो सिर्फ बैड बैक्टीरिया को नाक से खत्म करे। जबकि गुड बैक्टीरिया नाक में बने रहें। वैज्ञानिकों ने अध्ययन के आधार पर बताया कि इसे प्रोबायोटिक इस मामले में कारगर हो सकता है। क्योंकि प्रोबायोटिक गुड बैक्टीरिया को मदद पहुंचाएगा जबकि बैड बैक्टीरिया को खत्म कर देगा। इस मामले में और भी रिसर्च की जा रही हैं।
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क्यों हो जाता है हे फीवर
यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी की एक अन्य रिसर्च के मुताबिक हे फीवर की पहचान नाक के अंदर जीवाणु के प्रकार से हो सकती है। अध्ययन में कहा गया कि हे फीवर के पीड़ित मरीज को प्रोबायोटिक पाउडर देने पर बहुत जल्दी लक्षण कम हो जाते हैं। न्यूज 18 वेबसाइट के एक लेख के अनुसार रिसर्च के डायरेक्टर डॉ. करीन रीड ने बताया कि प्रोबायोटिक को मुंह से लिया जाता है और आंत में जाता है लेकिन जब मेटाबोलाइट्स (प्रोबायोटिक जब आंत में टूटता है तब बायप्रोडक्ट के रूप में मेटाबोलाइट्स बनता है) खून के माध्यम से शरीर के अन्य अंगों में भी पहुंच जाता है जो अप्रत्यक्ष रूप से नाक पर भी असर करता है।
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