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आज का इतिहास- जलियांवाला बाग की 104वीं बरसी

यूं तो इतिहास में कई तारीखें हैं जिनमें कई घटनाएं दर्ज हैं लेकिन 13 अप्रैल 1919 का दिन कोई भारतीय आज तक नहीं भूल पाया है। गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारत में इस दिन पंजाब के अमृतसर जिले में ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर के नजदीक जलियांवाला बाग में अंग्रेजों ने निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं।
हर साल 13 अप्रैल को उस नरसंहार की यादें ताजा हो जाती हैं। हर भारतीय के लिए जलियांवाला बाग हत्याकांड बेहद दर्दनाक घटना है, कुआं भारतीयों की लाशों से पट गए और मौत का वह मंजर हर किसी की रूह को चोटिल कर गया। आज जलियांवाला बाग हत्याकांड की 104वीं बरसी पर जानें उस दिन के नरसंहार का इतिहास।

10 मिनट्स में किए थे 1650 राउंड फायर

ब्रिटिश सैनिकों ने महज 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाईं। इस दौरान जलियांवाला बाग में मौजूद लोग उस मैदान से बाहर नहीं निकल सकते थे, क्योंकि बाग के चारों तरफ मकान बने थे। बाहर निकलने के लिए बस एक संकरा रास्ता था। भागने का कोई रास्ता न होने के कारण लोग वहां फंस कर रह गए। कुछ लोग भगदड़ में कुचले गए थे।

लाशों से पट गए कुएं

अंग्रेजों की गोलियों से बचने के लिए लोग वहां स्थित एकमात्र कुएं में कूद गए थे। कुछ देर में कुआं भी लाशों से भर गया। जलियांवाला बाग में शहीद होने वालो का सही आंकड़ा आज भी पता न चल सका लेकिन डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, तो जलियांवाला बाग में 388 शहीदों की लिस्ट है। ब्रिटिश सरकार के दस्तावेजों में 379 लोगों की मौत और 200 लोगों के घायल होने का दावा किया गया। हालांकि अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार और जनरल डायर के इस नरसंहार में 1000 से ज्यादा लोग शहीद हुए थे।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के परिणाम

  • 1.जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि का त्याग कर दिया था। इसके अलावा, वायसराय की कार्यकारिणी के भारतीय सदस्य शंकरराम नागर ने कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया था।
    2. इस घटना से पहले तक तो सभी स्थानों पर सत्याग्रह शांतिपूर्ण तरीके से संचालित किया जा रहा था, लेकिन बाद देश में सत्याग्रहियों ने अहिंसा का परित्याग कर दिया और हिंसा का मार्ग अपना लिया।
    3. गांधी जी ने 18 अप्रैल, 1919 को सत्याग्रह को समाप्त करने की घोषणा कर दी थी क्योंकि उनका मत था कि सत्याग्रह में हिंसा का कोई स्थान नहीं होता है।
    4. एक इतिहासकार एपीजे टेलर ने जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना के विषय में लिखा कि “जलियांवाला बाग जनसंहार भारतीय इतिहास में एक ऐसा निर्णायक मोड़ था कि इसके बाद भारत के लोग ब्रिटिश शासन से अलग हो गए।”
    5. राष्ट्रवादी क्रांतिकारी उधम सिंह ने इसके लिए जिम्मेदार अंग्रेज अधिकारी से बदला लेने की ठानी और उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया। वास्तव में, वर्ष 1919 में हुए पंजाब में विरोध प्रदर्शन को निर्मम तरीके से लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर ने कुचला था। किस अंग्रेज अधिकारी से बदला लेने के लिए उधम सिंह ब्रिटेन चले गए थे और वहां पर उन्होंने लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’ड्वायर की हत्या कर दी थी। इस अपराध के कारण ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1940 में उधम सिंह को दोषी करार देते हुए फांसी दे दी थी।
    6. वर्ष 1974 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रवादी क्रांतिकारी उधम सिंह की अस्थियों को भारत लाया गया था।

ये गलत तथ्य है

आप जानते हैं कि ब्रिटिश जनरल माइकल ओ’ड्वायर के आदेश पर लोगों पर गोलियां बरसाई थीं। इस हत्‍याकांड हजारों मासूम भारतीयों की मौत हो गई थी। लेकिन, कहा जाता है कि इस हत्याकांड के बाद क्रांतिकारी उधम सिंह ने इसका बदला लिया था और जनरल डायर को लंदन जाकर गोली मार दी थी।

सच यह है

शहीद ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया था और लंदन जाकर एक शख्स की हत्या भी की थी। लेकिन, ऊधम सिंह ने लंदन में जिस शख्स की हत्या की थी, वो वह जनरल डायर नहीं था, जिसने जलियांवाला बाग में गोलियां बरसाई थीं। दरअसल, इस हत्याकांड में दो लोग अहम थे। एक थे माइकल ओ ड्वायर, वह पंजाब के लेफ्टिनेंट गर्वनर थे। दूसरा था कर्नल रेजीनाल्‍ड डायर, जिसने जलियांवाला बाग में जिन्‍होंने गोली चलाने का आदेश दिया। लेफ्टिनेंट गर्वनर ड्वायर ने कर्नल डायर की तरफ से दिए गए फायरिंग के ऑर्डर का समर्थन किया था।
इसके बाद ऊधम सिंह ने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर जनरल डायर और तत्कालीन पंजाब के गर्वनर माइकल ओ’ड्वायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ली। जिस डायर ने गोलियां चलवाई थीं, उस जनरल डायर की 1927 में ब्रेन हेमरेज से मौत हो चुकी थी। जिसके लिए कहा जाता है कि ऊधम सिंह ने उसे लंदन जाके मारा था। वहीं, सच ये है कि ऊधम सिंह ने जिन्हें मारा था वो थे माइकल फ्रेंसिस ओ’ ड्वायर था।

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