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खुजली की समस्या काफी गंभीर होती है। जिसका इलाज डॉक्टर्स द्वारा किया जाता है। लेकिन बैठे ही बैठे अचानक खुजली होना आम है। ऐसे में हम तत्काल दूसरे व्यक्ति से मदद मांगते हैं। लेकिन यह अजीब बिडंबना है कि खुजाने वाला व्यक्ति कभी भी पहली बार में सही जगह पर नहीं खुजाता है। जाने ही कितनी बार बताने के बाद वह खुजली के स्थान पर पहुंचता है। क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है कि आप किसी को खुजाने के लिए बाेलें और वह सही जगह पर न खुजा पाए। खास बात है कि अंत में यह कहना ही पड़ता है कि तू रहने दे, मैं खुद ही खुजा लूंगा। यह लेख आपको जरूर ऊटपटांग लग रहा होगा। लेकिन इस लेख में हम आपको खुजली से जुड़े हुए महत्वपूर्ण तथ्य बताएंगे…

करीब 350 साल पहले दी थी खुजली की परिभाषा

खुजली की जो परिभाषा आज चलन में है, वह साढ़े तीन सौ बरस पहले एक जर्मन डॉक्टर सैमुअल हैफ़ेनरेफ़र ने तय की थी। यह है परिभाषा ‘खुजली शरीर को महसूस होने वाली ऐसी सनसनी है, जो खुजलाने से शांत होती है’। कई बार यह बीमारी का हिस्सा होती है। कई बार खुजली मनोवैज्ञानिक कारणों से भी होती है। कुछ लोगों में तो खुजली करने की आदत एक जुनून की तरह होती है। क्येांकि व्यक्ति तब तक खुजाता रहता है जब तक वह अपनी त्वचा को नुकसान न पहुंचा ले।  वैज्ञानिक मानते हैं कि इससे ख़ास जगह की तंत्रिकाएं शांत होती हैं। खुजली एक तरह से हल्का दर्द है।

छुआछूत की तरह है खुजली

खुजली कभी-कभी छुआछूत की बीमारी जैसी महसूस होती है। क्योंकि जब भी आसपास किसी को खुजलाते देखेते हैं तो हम कई बार खुद खुजाने लग जाते हैं। इसी चीज को देखने के लिए एक बार तो वैज्ञानिकों ने खुजली पर लेक्चर रखा।  उसमें ज़्यादातर लोग पूरे वक़्त खुजलाते ही रहे थे। फिलहाल लेख लिखते समय मुझे भी महसूस हुआ कि मुझे खुजली की बीमारी है। क्योंकि हर दो लाइन के बाद मैं हाथ पैरों को खुजा रही हूं। एक रिसर्च पेपर में कहा गया है कि खुजली कुछ भी नहीं है, खुद को राहत या तकलीफ देने का जरिया है। यां तो हम खुद को खरोचते हैं या किस प्रिय से पीठ खुजलाते हैं।  कई बार खुजली से तकलीफ़ के बजाय राहत महसूस होती है। 

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खुजली की खोज में ही हो गई थी वैज्ञानिक की मौत

वैज्ञानिक जेआर ट्रेवर के 40वें जन्मदिन पर खुजली महसूस हुई थी। उन्हें लगता था कि खुजली की यह बीमारी एक घुन की वजह से हुई। जिसके बाद से उन्होंने खुजली पर रिसर्च शुरू की और इलाज खोजना शुरू किया। यहां तक कि उनकी मौत भी खुजली की खोज में ही हो गई। उन्होंने खुजलाते-खुजलाते अपनी चमड़ी तक उधेड़ ली थी। उनकी त्वचा के टुकड़े वैज्ञानिकों को भेजे गए ताकि बीमारी पता चल सके। लेकिन उनका इलाज नहीं हो सका। वह पूरे दिन खुद को खुजाती ही रहती। इस पर रिसर्च पेपर तक लिख डाला। एक डॉक्टर ने उन्हें मनोवैज्ञानिक के पास भेजा। लेकिन कोई इलाज नहीं हो सका। उनकी मौत भी खुजली करते हुए ही हो गई। दरअसल उसको ‘डेलुज़री पैरासिटोसिस’ बीमारी थी। इसमें बीमारी का वहम होता है।  कई बार ये खुजली से हो जाता है। 

प्रिय से खुजली कराते हैं लोग

बहुत से लोग ऐसे हैं जो अपने प्रिय से खुजली कराना पसंद करते हैं। यह उन्हें अधिक राहत देता है। इसके साथ ही सही जगह पर खुजली नहीं कर पाने का राज भी यही है। क्योंकि एक जगह खुजली होने के बाद हर जगह पर महसूस होने लगती है। यदि अभी हम खुजली के बारे में सोचे तो हमें शरीर के हर हिस्से पर महसूस हो सकती है। 

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