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हर किसी की एक कहानी होती है। हर कहानी में एक किरदार होता है। न्यूज चैनल्स में, अखबारों में, मैगजीन्स में उन लोगों के इंटरव्यू छपते हैं, जिन्होंने जीवन में बहुत पैसा कमाया है। नाम कमाया है। जो दिन रात मेहनत करते हैं। कोई नहीं छापता दोपहर में खेतों में काम करती इन औरतों को, कोई नहीं दिखाता इनके जीवन से जुड़े किस्से। कोई नहीं चीख-चीख कर बताता इनके जीवन का संघर्ष।

इस आर्टिकल में हम आज आपको ऐसी महिलाओं के बार में बताएंगे जो दिन रात मेहनत करती हैं, जो खेतों में कमाती हैं, जो घर को संभालती हैं, जो पति की सेवा भी करती है, पशु भी रखती है। इनकी जिंदगी कितनी संघर्ष भरी होती है ये कोई क्यों नहीं जानना चाहता।

काम करते-करते बुढ्ढे हो गए

हरदेश का कहना है कि काम करती-करती वो बुढ्ढी हो चुकी है। जब 15 साल की उम्र में ब्याह के आई थी, तब लगी थी और आज 50 साल की हो गई। सुबह चार बजे उठती हूं, पशुओं का गोबर डालकर, चारा डालती हूं, फिर दूध निकालती हूं। सबको बिस्तर पर चाय पकड़ाती हूं। रोटी, सब्जी, झाडू, बर्तन, पशुओं को पानी पिलाकर चारा डालकर, कपड़े धोकर निकल जाती हूं खेतों में कमाने। ऐसे ही खेतों में काम करके बच्चों को पढ़ाया है। कामयाब बनाया है, ताकि आगे मेरी बेटी को संघर्ष न करना पड़े।

हरदेश, गांव भेरा, भिवानी

औरतों के जीवन में आराम है ही नहीं

घर का काम, खेत का काम, बच्चों को संभालना, पढ़ाई करना और परिवार को संभालना बहुत मुश्किल है। शहर में तो घर में काम करने के लिए नौकरानी रख लेते हैं, लेकिन हम नौकरानी भी नहीं रख सकते। गांव में सब काम खुद करना पड़ता है। काम ना करें तो ससुराल वालों को भी अच्छा नहीं लगता और मायके वाले भी ये बोल देते हैं कि सब चीजों को साथ में लेकर चल। बहुत बार दबाव आ जाता है। आप काम नहीं करना चाहते हैं, फिर भी समाजिक दबाव में आपको सब करना पड़ता है। ये बोल देते हैं कि अकेले पढ़ाई से काम नहीं चलेगा, काम करो। बहुत मुश्किल है सब कुछ। पैसे वाले लोग तो सब पैसे देकर मैनेज कर लेते हैं, मुश्किल तो हम मिडिल क्लास लोगों को आती है।

पिंकी, सिवानी

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औरतों की मेहनत किसी को नहीं दिखती

छोटी सी उम्र में ब्याह हो गया था, ब्याह होते ही घर, खेत सब संभाल लिया, सास का काम को लेकर बहुत दबाव रहता था, उस समय में सब काम बहुओं को करना होता था, सब कुछ हाथ से करते थे। कोई मशीन नहीं थी। आटा भी हाथ से पिसते थे, दुध भी हाथ से बिलौते थे, चारा भी हाथ से काटते थे। बच्चे भी चार-चार होते थे। सब संभालते थे।

आजकल सब मशीनें आ गई हैं। लेकिन काम तो वही है। आज भी बहुओं को सब करना पड़ता है। मेरा पूरा जीवन तो संघर्ष से भरा था, पति की मौत के बाद मैंने बच्चों को पढ़ाया, लिखाया। खेतों में अकेली काम करती थी, लेकिन कभी हिम्मत नहीं हारी। आज बच्चों की शादी करदी। बेटी अपने घर चली गई। बहु आ गई सब अच्छा चल रहा है। बहुत मेहनत करती है गांव की औरते इनको कोई नहीं दिखाता।

  राजपति, गांव बुड़ाक, हिसार

महिला को किसान का दर्जा देने में भी आनाकानी

मैं एक गृहणी होने के साथ महिला किसान हूं। घर के काम से लेकर पशुपालन और खेती का काम करके आजीविका को सशक्त बना रही हूं। सुबह पशुओं को चारा व गोबर डाल के फिर चुल्हे चौके का काम निपटा कर खेत में जाकर हाथ बंटाना अपने आप में एक चुनौती हैं। खेती का काम करते खेती की सभी नॉलेज प्राप्त की। अब मजदूरी इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि पूरा काम मजदूरों से करवाना मुश्किल हो रहा हैं।

इसलिए परिवार के साथ मिलकर तपती धूप,ठंड और बरसात में घंटों खेत में बुआई, कटाई, कढ़ाई सब में हाथ बंटा रही हूं। ताकि मजदूरी बच्चे और अपने स्तर पर किया गया काम अच्छी तरह से हो, लेकिन मेरा मानना है महिला किसानों को भी बस उनका जायज हक मिलना चाहिए क्योंकि महिला का श्रम पुरुषों की तुलना में दुगुना होता है इसके बावजूद भी महिलाओं को किसान का दर्जा देने में आनाकानी हो रही है।

कमला, गांव मल्लापुर, हिसार

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