तो जैसा कि हमने पहले बताया था कि फलाने-ढिमकाने पंडित जी को लड़कियों से कोई खास लगाव नहीं था। जब भी कोई ज्ञान का पिटारा खोलना होता तो वह सबसे पहले महिलाओं पर तीर चलाते थे। उन्होंने तमाम ऐसे नियम बनाए जिन्हें महिलाओं को मानना पड़ा। जिसमें खास था गुरुवार को सिर नहीं धोना, पति को परमेश्वर मानना, रसोई को कर्मभूमि की तरह पूजना। एक दिन उनके मन में कुछ खास करने की सूझी तो शुरू की गई लड़कियों के कद्दू नहीं काटने की परंपरा। लेकिन अब महिलाएं परेशान हो गई थी।
अब कद्दू की क्या गलती है। बेचारा कितना हरा भरा, गोलू मोलू सा है। आसानी से कट जाता था, आसानी से पक जाता है। फलाने ढिमकाने जी ने उनका भी पत्ता काट दिया। ऐसे में महिलाओं ने उनकी बात नहीं मानी। वो लंबे से चाकू से कद्दू पर जबरदस्त वार करके झट से खट्टा मीठा कद्दू बना देती थी। अब यह देख कर फलाने जी को बिल्कुल अच्छा ना लगा। फिर उन्होंने ब्रह्मास्त्र की तैयारी की। उन्होंने कहा कि महिलाओं द्वारा कद्दू का काटना अपने बड़े बेटे की बलि देने के बराबर है।
अब महिलाएं डर गई। पुत्र प्रेम, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। अब महिलाओं को फलाने जी की बातें माननी पड़ी और शुरू हो गई महिलाओं द्वारा कद्दू नहीं काटने की परंपरा।
कद्दू नहीं काटने से महिलाओं को होती है ये परेशानी
अब पंडित जी तो गए लेकिन कई समस्याएं खड़ी कर गए। अब महिलाएं कद्दू कटवाने के लिए पुरुषों का इंतजार करती हैं और ये महानुभाव कद्दू काटने का अहसान भी उनके सिर पर फोड़ते हैं। बरेली की रीना का कहना है कि यह परंपरा उनके परिवार में गंभीरता से मनाई जाती है। इसके लिए वे कभी-कभी कद्दू बनाने में लेट हो जाती हैं। यहां तक कि वे कभी-कभी सिर्फ इसी वजह से कद्दू भी नहीं खरीदती।
क्या है परंपरा
मथुरा छाता के पंडित गिरधारी लाल का कहना है कि यह पुरानी सामाजिक मान्यता है कि महिलाओं को नारियल नहीं फोड़ना चाहिए। इसके साथ ही कद्दू नहीं काटने की परंपरा है। ये दोनों काम करना अशुभ होता है। कद्दू का काटना बड़े बेटे की बलि देने के बराबर है। इसके साथ ही कई मंदिरों में बकरे की जगह कद्दू की बलि चढ़ाई जाती है।
आदिवासी समाज में है इस फल का विशेष महत्व
आदिवासी समाज इसे सामाजिक फल माना जाता है। धार्मिक तौर पर विशेष मान्यताएं जुड़ी हुई है। उनके क्षेत्र में और इसे चुराने वाले को दंडित किया जाता है। बस्तर में बकायदा इसके लिए 29 सितंबर को कद्दू दिवस मनाया जाता है। वहां इसे कुम्हड़ा कहा जाता है। 29 सितंबर को विश्व कुम्हड़ा दिवस मनाया जाता है।
इन नामों से भी जाना जाता है कद्दू
- कद्दू
- सीताफल,
- कुम्हड़ा,
- काशीफल ,
- रामकोहला ,
- कोड़ा और
- कुष्मांड
- pumpkin
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कद्दू खाने के फायदे
कद्दू एक स्वस्थ और पोषणपूर्ण फल है जो आपके शरीर के लिए कई फायदे प्रदान करता है।
- वजन कम करने में सहायता: कद्दू में कम कैलोरी और बहुत कम मात्रा में वसा होती है जो वजन कम करने में मदद करता है।
- शरीर को पोषण प्रदान करता है: कद्दू में विटामिन, मिनरल और एंटीऑक्सिडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं जो आपके शरीर को पोषण प्रदान करते हैं और स्वस्थ रखते हैं।
- आंत की समस्याओं से राहत: कद्दू में फाइबर की भरपूर मात्रा होती है जो आंत के संरचना को स्वस्थ रखने में मदद करती है और कब्ज को दूर करती है।
- दिल के लिए फायदेमंद: कद्दू में पोटैशियम की मात्रा भरपूर होती है जो दिल के लिए फायदेमंद होता है।
- एंटीफंगल गुण: कद्दू में विटामिन सी और एंटीऑक्सिडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं जो वायरस और फंगल संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं।
NOTE- इस खबर से किसी की धार्मिक भावनाओं व मान्यताओं का खंडन नहीं किया जा रहा है। इसे एक हास्य के साथ व्यंग्यात्मक अंदाज में पेश किया गया है। हम सभी धार्मिक व सामाजिक रीतिरिवाजों व परंपराओं के साथ हैं।