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Pig farming-जिस जानवर को आप गंदा व बदबूदार समझते हैं, यदि आप उसे पालेंगे तो मालामाल हो जाएंगे। हम बात कर रहे हैं ‘सूकर’ की। घबराइए मत! हम इसे कुत्ता, बिल्ली, खरगोश या अन्य किसी जानवर की तरह घर में पालने की नहीं, बल्कि इसके व्यावसायिक पालन की कह रहे हैं। ये बिजनेस आपको को कुछ ही समय में लखपति बना देगा।

पिछले कुछ सालों में सूकर पालन लाभदायक बिजनेस  बनकर उभरा है। उत्तर पूर्वी प्रदेश व विदेशी मांग की आपूर्ति के लिए उत्तरी व मध्य भारत में सूकर पालन केंद्रों की संख्या बढ़ी है, खासकर दिल्ली-एनसीआर के नजदीक। आज के इस लेख में चर्चा सूकर पालन की करेंगे, तो चलिए जानते हैं ये कैसे आपको फायदा पहुंचाता है। 

आर्थिक रूप से लाभदायक

आर्थिक दृष्टि से यह जानवर बहुत ही उपयोगी है। यह खेती के अनुपयोगी और खराब उत्पाद जैसे आलू, अनाज, सब्जी तथा होटल के बचे हुए खाद्य पदार्थों, सड़े-गले फलों को खाता है। इससे अपने शरीर में वृद्धि कर उपयोगी मांस तैयार करता है। इसके अलावा मादा सूकरी साल में दो बार बच्चे देती है। एक बार में 8 से 10 (ब्रीड अनुसार) बच्चे देती है। पालन समय की बात करें तो 1.2 किलोग्राम का सूकर शावक महज नौ माह में 90 से 100 गुना बढ़ जाता है, जिसे आगे अच्छे दाम में बेचा जा सकता है।

बड़े काम का है सूकर

सूकर के मांस को ‘पोर्क‘ कहा जाता है, जो कि उत्तर पूर्वी राज्यों के मांसाहारी लोगों में काफी लोकप्रिय है। अन्य जानवरों की तुलना में सूकर का मीट स्वादिष्ट होता है। साथ ही इसमें 23 प्रतिशत प्रोटीन होता है, जो कि सबसे अधिक है। इसकी चर्बी से साबुन, फेयरनेस क्रीम व अन्य काॅस्मेटिक पदार्थ बनते हैं। चर्बी से औषधि बनती है (जैसे एंटी-केंसर मेडिसिन्स)। इसके अलावा सूकर के बाल ब्रश बनाने के काम आते हैं। तीन व पांच सितारा होटलों में पोर्क चलन में आ चुका है। यही वजह है कि दिल्ली-एनसीआर के करीब सूकर पालन केंद्रों की संख्या बढ़ी है।

यहां ले सकते हैं प्रशिक्षण

सूकर पालन केंद्र खोलने से पहले इसका प्रशिक्षण लेना आवश्यक है, जिससे सूकर और उसकी प्रजातियों तथा उत्पादन व बिक्री की प्रक्रिया को समझा जा सके। उत्तर प्रदेश में केवल अलीगढ़ में ही सरकारी प्रशिक्षण केंद्र है। सूकर पालन प्रशिक्षण केंद्र, क्वार्सी फार्म में दस दिवसीय प्रशिक्षण दिया जाता है।

इसके लिए आप अपने जिले के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं, जहां फार्म भरकर आवेदन कर सकते हैं। आवेदकों की संख्या अधिक होने के कारण प्रशिक्षण के लिए दो से तीन माह तक इंतजार कर सकते हैं। अलीगढ़ में ही केंद्रीय डेयरी फार्म (सी.डी.एफ.) में 100 सालों से अधिक पुराना सरकारी सूकर पालन केंद्र है, जो अभी भी संचालित है।

विदेशी नस्ल हैं लाभदायक

स्वदेशी की अपेक्षा सूकरों की विदेशी नस्लें अधिक फायदेमंद हैं। सीडीएफ केंद्र के डा. स्नेह कुमार ने बताया कि ब्रिटिश शासन के दौरान एडवर्ड कैवेंट्रस ने स्वीडन से सूकर की उत्तम नस्ल आयात की थीं। तब सीडीएफ का नाम अलीगढ़ डेयरी फार्म (एडीएफ) था। यहीं से पूरे देश में विदेशी नस्लों का पालन शुरू हुआ।

इनमें सबसे लोकप्रिय लार्ज व्हाइट यार्क शायर सूकर है। यह कनाडा, स्काॅटलेंड, आयरलेंड व यूएसए में पाला जाता है। इसका आकार बड़ा, लंबा और रंग सफेद होता है। अन्य नस्लों की अपेक्षा इसका मांस स्वादिष्ट होता है। इसलिए यह अधिक पाया जाता है। नर सूअर का भर तीन सौ से चार सौ किलो तथा मादा का तीन सौ से साढ़े तीन सौ किलो तक पहुंचता है। इनके अलावा विदेशी में मिडिल व्हाइट यार्क शायर, डैनिसर लैंड्रस, रशियन चैमुखा, हैंप शायर, टैंबर्थ ब्रीज आदि हैं।

नोट- आपको ये लेख कैसा लगा है, कमेंट  करेक अपने राय और सुझाव जरुर दीजिए। इस प्रकार की अन्य जानकारी के लिए जुड़े रहिए द यूनिक भारत के साथ धन्यवाद। 

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