होली का त्याहौर रंगों का होता है। लोग एक दूसरे को बड़ी प्यार से गुलाल लगाकर इस त्यौहार को मनाते हैं। हर जगह पर अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार अलग-अलग प्रकार की होली खेली जाती है। इस दिन कहीं पर फूलों से होली खेली जाती है तो कहीं पर लठमार होली खेली जाती है। एक –दूसरे पर पानी फेंककर फिर कोरड़े मारने वाली होली भी खेली जाती है और मसान में जाकर एक दूसरे को चिता की भस्म लगाने वाली होली भी देश में खेली जाती।
काशी मेें चिता की भस्म के साथ खेलते हैं होली
दरअसल हर क्षेत्र में अपनी परंपरा के अनुसार ही होली का ये पवित्र त्यौहार मनाया जाता है। काशी में भी चिता की भस्म के साथ लोग होली खेलते है। चिता की भस्म से होली खेलने के पीछे लोगों की मान्यताएं जुड़ी हुई है। हर साल की तरह इस बार भी मणिकर्णिका घाट पर लोगों ने होली खेली। मसान में चिता की भस्म एक दूसरे को लगाई और हर-हर शम्भू के साथ घाट गूंजने लगा। इस होली का आंनद हर वर्ग के लोग लेते है। काशी की ये होली देखने वाली होती है। भीड़ जलती चिताओं के बीच जय-जय शंभु के नारे लगाती है। एक-दूसरे को गुलाल लगाने की बजाए चिता की भस्म लगाकर होली की शुभकामनाएं देते है।
क्यों खेलते है भस्म से होली
कहा जाता है कि इस दिन खुद महादेव ने भूत प्रेतों के साथ यहां होली खेली थी। इसलिए यहां पर चिता की भस्म से होली खेली जाती है। लोगों का मानना है भगवान शिव खुद यहां होली खेलने आते है। यह होली रंगभरी एकादशी के दिन खेली जाती है। जलती चिताओं के बीच ये होली का उत्सव मनाया जाता है।बाबा महाश्मशान नाथ और माता मशान काली की सबसे पहले आरती की जाती है और उसके बाद गुलाल चढ़ाया जाता है। इसके बाद लोग जलती चिताओं के बीच भस्म से होली खेलनी शुरू कर देते हैं।
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शिव रखते है भूत प्रेतों को रोककर
लोगों में मान्यता ये भी है कि भगवान शिव भूत प्रेतों को रोके रखते है ताकि वो इंसानों के बीच ना जा सके। कहा जाता है कि ये सबका प्रिय त्याहौर है और इसमें सभी देवी,देवता,गन्धर्व,यक्ष, मनुष्य सब शामिल होते हैं। भूत-प्रेत कुछ अदृश्य शक्तियां इसमें शामिल नहीं होते जिनको भोलेनाथ ने रोक रखा है। शिव शंभु अपने चहेते भूत प्रेतों के साथ होली खेलने खुद मसान में आते हैं। कहा जाता है कि वाराणसी में ये दिन उत्सव की तरह मनाया जाता है।