लोगों में गार्डनिंग का क्रेज बढ़ रहा है। लोग बगीचों, छत, बाल्कनी व कमरों में गार्डनिंग कर रहे हैं। अच्छी फ्लावरिंग और फ्रूटिंग के लिए तमाम प्रयास भी करते हैं। हालांकि एक छोटे से गमले में पौधे उगाना, उनसे सब्जियां व फल प्राप्त करना एक बड़ा चैलेंज है। हम 8 से 10 इंच के गमले में पौधे को वो सभी चीजें देते हैं जो पौधा जमीन से लेता है। इसी कड़ी में इन दिनों प्लांट स्ट्रेस थैरपी का नाम भी सामने आ रहा है।
बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आप पौधे से ढेरों फल व फूल प्राप्त करना चाहते हैं ताे आप पौधे को हल्का तनाव दें। हालांकि इसके काफी नुकसान भी हो सकते हैं। लेकिन अगर यह सावधानी से किया जाए तो इसके फायदे अधिक है। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि प्लांट स्ट्रेस थैरपी क्या है। इसके फायदे क्या है। कैसे की जाती है।
क्या है प्लांट स्ट्रेस थैरपी (What is plant stress therapy?)
प्लांट स्ट्रेस तकनीक एक ऐसी योजना है जिसके माध्यम से पौधे को हल्का तनाव दिया जाता है। जिससे कि वह अधिक उत्पादन के लिए उत्तेजित हो जाए। ऐसा माना जाता है कि इसके बाद पौधा तेजी से फल उत्पादन के लिए प्रेरित होता है। इसके साथ ही वृद्धि के लिए भी उत्तेजित हाेता है। ऐसा अधिकतर तब किया जाता है जब पौधा फलों का उत्पादन कम कर रहा है। हम अधिकतर इस तकनीक का इस्तेमाल पपीते के पौधे में करते आए हैं।
कैसे दिया जाता है पौधों को स्ट्रेस (How are plants given stress?)
- पौधे में छोटे सी लोहे की कील लगाकर
- पानी कम देकर
- पानी अधिक देकर
- तापमान बदलकर
- जगह बदलकर
- पिंचिंग कर
सावधानी बरतनी जरूरी
कई विशेषज्ञों द्वारा इस तकनीक को अपनाया जा रहा है। लेकिन अधिकतर विशेषज्ञों का मानना है कि इस तकनीक में अधिक सावधानी की जरूरत होती है। क्योंकि इस तरीके से पौधे के खराब होने का भी डर होता है। याद रखें कि यह प्रक्रिया पौधे के साथ बहुत कम समय के लिए की जाती हे। जब पौधे पर फूल आने की शुरूआत आती है तो हम पौधों में कुछ दिनों के लिए पानी देना कम कर सकते हैं। लेकिन याद रखें कि हमें इतना पानी जरूर देना है कि पौधा मरे नहीं।
लोहे की कील लगाना
स्ट्रेस थैरपी में पौधों में लोहे की कील लगाना भी सामान्य हो रहा है। लोग पौधे में छोटे से कील लगा देते हैं। लोगों का मानना है कि इससे पौधे पर फ्रूटिंग शुरू हो जाती है। लेकिन याद रखें कि ज्यादा बड़ी कील न लगाएं। कील को अच्छी तरह साफ करने के बाद ही प्रयोग करें। कील तने के भीतर 10 फीसदी ही जानी चाहिए। पौधे पर जब फल लगना शुरू हो जाए तो कील को निकाल देना चाहिए। याद रखें हमें सिर्फ एक पौधे में एक ही कील का प्रयोग करना चाहिए।
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