इंटर क्रॉपिंग नाम सुनते ही जहन में आता है कि आखिर ये इंटर क्रॉपिंग है क्या। इंटर क्रॉपिंग का मतलब है खेत के खाली जगह में या बीच-बीच में कोई दूसरी फसल लेना है। ऐसे किसान धार जिले के मनावर विकासखंड के हैं जो सालाना एक लाख से ज्यादा कमाई कर रहे है। आज आप भी जानें कैसे कपास के साथ ककड़ी की फसल लगाकर कैसे कमाई की राह बना रहे हैं।
यहां के किसान इंटर क्रॉपिंग टेक्नीक से खेती करके कम लागत पर ज्यादा मुनाफा ले रहे है। किसानों ने कपास के साथ ककड़ी की फसल लगाई है। किसानों का कहना है कि एक बीघा में ककड़ी की फसल लगाने की लागत पांच हजार आती है। वहीं, एक बार कपास और ककड़ी की फसल लगाने के बाद एक साल में तीन बार उपज मिल जाती है। ककड़ी देश के बड़े शहरों के साथ विदेशों में सप्लाई की जा रही है।
एक बार फसल से तीन बार उपज
किसानों का कहना है कि ककड़ी की फसल के लिए प्रति बीघा पांच हजार का खर्च आता है। इससे 35 हजार रुपये की उपज एक बार में होती है। खीरा ककड़ी से हमें जीवन में पहली बार किसी सब्जी में इतने पैसे की बचत हुई है। एक फसल से तीन बार उत्पादन लेते हैं। वहीं, कपास की प्रति बीघा की फसल में 16 हजार की लागत आती है। एक बार में सात क्विंटल उत्पादन होता है। 8000 रुपये के भाव से एक बार में 56 हजार की कमाई होती है। सालाना एक लाख 68 हजार तक कमाई हो जाती है।
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गर्मियों में बाजार में काफी मांग
खीरे की गर्मियों में बाजार मांग को देखते हुए जायद सीजन में इसकी खेती करके अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। कद्दूवर्गीय फसलों में खीरा की बाजार में काफी मांग रहती है। यह गर्मी के मौसम शरीर में पानी की कमी को भी पूरा करता है। इसलिए गर्मियों में इसका सेवन काफी फायदेमंद बताया गया है।
15 रुपये किलो ककड़ी खरीदते हैं व्यापारी
650 िकलोमीटर दूर मनावर आकर जयपुर के व्यापारी किसानों के खेत से ही ककड़ी खरीद लेते हैं। किसानों से ये व्यापारी 15 रुपये किलो के खीरा ककड़ी खरीदते हैं। ताजी ककड़ी भारत के बाहर अरब देशों में पहुंचाई जाती है। वहीं, जयपुर और गुड़गांव के प्लांट में ले जाकर वैक्यूम पैक कराते हैं।
रेतीली भूमि में खीरे की खेती अच्छी होती है
बाजार में खीरे की मांग और कीमतें लगातार बढ़ हैं। खीरे का उपयोग वजन को कम करने और सलाद के रूप में किया जाता है। रेतीली भूमि में खीरे की खेती से अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। खीरा बहुत जल्दी तैयार होने वाली फसल है। इसकी बुआई के दो महीने बाद ही इसमें फल लगना चालू हो जाते हैं। अच्छा उत्पादन लेने के लिए 20-25 टन गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालनी चाहिए।
इंटरक्रॉपिंग से बरसात के दिनों में मिट्टी का कटाव रुकता है
इंटरक्रॉपिंग पद्धति अधिक या कम बारिश में फसलों की विफलता के खिलाफ एक बीमा के रूप में कार्य करती है। जिससे किसान जोखिम से बच जाते हैं, क्योंकि एक फसल के नष्ट हो जाने के बाद भी सहायक फसल से उपज मिल जाती है। वहीं फसलों में विविधता से रोग व कीट प्रकोप से फसल सुरक्षित रहती है। बरसात के दिनों में मिट्टी का कटाव रोकने में मदद मिलती है।
इंटर क्रॉपिंग टेक्निक में इन बातों का ध्यान रखें
इंटर क्रॉपिंग में ऐसी फसलों का चुनाव करना चाहिए जो एक-दूसरे के लिए सहायक हो। गहरी जड़ वाली फसल के साथ उथली जड़ वाली फसल लगाना चाहिए। जैसे कपास के साथ मूंग या उड़द। दलहनी फसल के साथ अदलहनी फसल लगाना चाहिए। जैसे सोयाबीन के साथ मूंग अथवा उड़द के साथ मक्का या बाजरा लगाना चाहिए। अधिक पोषक तत्व लेने वाली फसल के साथ कम पोषक तत्व लेने वाली फसल लगाना चाहिए।