मर्द को दर्द नहीं होता, मर्द को रोना नहीं चाहिए। क्यों भई ! मर्द के अंदर क्या दिल नही होता ? मर्द का शरीर क्या लोहे का बना होता है? मर्द के अंदर क्या भावनाएं नहीं होती? मर्द हो तो रोना नहीं है, ये कौन सी किताब में लिखा है ? मर्द की आंखों में पानी नहीं होता कौन से वैज्ञानिक ने माना है? फिर क्यों आपने और हमने मर्द के रोने पर पांबदी लगा दी।
नहीं रोने का क्या है कारण
जब कोई भी लड़का छोटा होता है, तो उसे बचपन से सीखाया जाता है कि तू आदमी है और रोना औरतों का काम है। रोने की भी कैटेगरी बांट दी, मर्द हो तो रोना नहीं है, औरत है तो रोना ही रोना है। जो मर्द रोता है, उसको कहा जाता है कि क्यों औरतों की तरह रो रहा है। छोटे से बच्चे को ही ये सीखा दिया जाता है कि रोना मना है। बच्चा सामाजिक परिवेश से सब कुछ सीखता है। आस-पास का माहौल जैसा हो वैसा बनना स्वाभाविक है। बहुत से लोगों का मानना है कि कमजोर इंसान ही रोता है। सामने वाला क्या सोचेगा, तु मर्द होकर रो रहा है। ये सोच भी मर्दों को रोने से रोक लेती है।
रोना भी स्वास्थ्य के लिए जरूरी
रोना अच्छा है।
रोने से आपको हल्का महसूस होता है।
रोने से शरीर में ऑक्सीटोसिन और एंडोर्फिन रिलीज होते हैं।
ऑक्सीटोसिन हार्मोन आपको शांत करवाने का काम करता है।
एंडोर्फिन हार्मोन से कुछ समय के लिए दर्द कम हो जाता है।
ये दोनों फील गुड हार्मोन होते हैं।
रोने से शारीरिक और भावानात्मक रुप से होते हैं मजबूत।
आंसूओं के साथ आंखों में मौजूद गंदगी बाहर निकल जाती है।
खुद को शांत करने के लिए रोना है जरूरी।
रोने की वजह से आपको दुख से उबरने में मदद मिलती है।
न रोने से भावनाओं में असंतुलन की समस्या हो जाती है।
दुख बाहर न निकालने की वजह से तनाव हो जाता है।
तनाव बढ़ने से इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है।
आंसू रोकने की वजह से आंखों में नमी की कमी आ जाती है।
आंखे खराब होने का भय होता है।
हार्ट पर पड़ता है बुरा प्रभाव।
रोने पर हंसते हैं लोग- सचिन जनावा
“बहुत बार रोने का मन करता है, लेकिन रोया नहीं जाता। औरत तो कहीं भी रो लेती हैं। हमें चोट लगने पर भी आंसू निकालने का हक नहीं होता। सामने वाला जब देख लेता है, तो हंसने लगता है। न रोने से दिल पर भार सा रहता है”।
सचिन जनावा,भिवानी
अजीज के दूर जाने पर रोना मना- जसविंद्र
“रोना भी औरतों के लिए बना है, मर्दों के तो रोने पर भी समाज ने पांबदी लगा दी है। सबसे अजीज के दूर जाने के बाद भी आंसूओं को छिपाना पड़ता है। मन करता है हम भी औरतों की तरह चीख-चीख कर रोएं, लेकिन मर्द रो नहीं सकते ये कहावत हमारे दिमाग में घर करके बैठी है”।
जसविंद्र, सिवानी
हमारे अंदर भी हैं भावनाएं- अनुप शर्मा
“घर में किसी की डेथ भी हो जाती है, तो रोया नहीं जाता। मर्द को दर्द नहीं होता फिल्म वाला डॉयलाग सब लोग बोल देते हैं। पर रियल में ये मर्दों के साथ बहुत बुरा होता है। हम भी इंसान है हमें भी दर्द होता है। हमारे अंदर भी भावनाएं हैं”।
रेनू, शब्दों के प्रति जुनून वाली बेहतरीन लेखक हैं। गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार से मास कम्युनिकेशन में मास्टर डिग्री के साथ, विभिन्न रूपों में लेख लिखने का सौभाग्य मिला है। एक टीवी समाचार चैनल में एक सफल निर्माता के रूप में काम किया है। उसके बाद वेब पोर्टल क्षेत्र में पांच साल का कार्यकाल रहा। अब यूनीक भारत के साथ जुड़कर बागवानी के प्रति अपने प्यार को सांझा कर रही हैं।
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