मोबाइल फोन मेरा सबसे प्रिय मित्र, जिसने पत्नी की जगह भी ले ली, मां की जगह भी ले ली, बहन-भाई सभी रिश्तेदार समार्ट फोन के आगे कुछ नहीं। मोबाइल के बिना नींद ही नहीं खुलती। पहले चाय जरूरी होती थी अब मोबाइल फोन पर मैसेज देखने जरूरी होते हैं। मोबाइल फोन की लत इस कदर लगी हुई है कि टॉयलेट में भी बैठे-बैठे रील देखने की आदत हो गई है। जब तक 25-30 रील न देख लो मूड बनता ही नहीं है।
हम और हमारे बच्चे समार्ट फोन के आदी हो चुके हैं। बच्चों को स्कूल से आते ही हाथ में फोन चाहिए। औरतें खाना बनाते समय भी साथ में फेसबुक चलाती हैं। आदमियों का तो बुरा हाल है। फोन की लत हमें बिमारियों की तरफ तो लेकर जा ही रही है। साथ ही अपनों से भी दूर कर रही है। ऐसे में जरूरत है डिजिटल डिटॉक्स की।
क्या होता है डिजिटल डिटॉक्स
स्क्रीन से दूरी को डिजिटल डिटॉक्स कहा जाता है। स्क्रीन की लत मानवीय संबंधों पर हावी होती जा रही है। इससे पीछा छुड़वाने के लिए डिजिटल डिटॉक्स बहुत जरूरी है। इससे मतलब है कि एक तय समय में डिजिटल चीजों के इस्तेमाल पर रोक लगा दें। जैसे समय निश्चित कर लें कि इस समय पर मोबाइल फोन, टीवी, लैपटाप आदि चीजों से इतनी देर तक दूर रहना है।
महाराष्ट्र के गांव में शुरू हुई पहल
महाराष्ट्र के सांगली जिले के गांव मोहितयांचे वडडागांव में ये पहल शुरू हो चुकी है। जहां पर शाम के समय लोग स्मार्टफोन, टीवी, कंप्यूटर और अन्य डिजिटल डिवाइस से दूर हो जाते हैं। ये सच में बहुत अच्छी पहल है। ये लोग डेढ़ घंटे के लिए डिजिटल दुनिया से दूरी बना लेते हैं। इस मुहिम की शुरूआत करने का उद्देश्य अपनों से जो दिन प्रतिदिन दूरी बनती जा रही है, उसको कम करना है। लोग आपसी रिश्तों को समय दे सकें इसके लिए ये पहल शुरू करने का फैसला लिया गया।
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सायरन बजते ही बंद हो जाते हैं डिजिटल गैजेट्स
मोहितयांचे वडडागांव गांव में शाम सात बजे सायरन बजता है। सायरन की आवाज सुनते ही लोग समझ जाते हैं कि उनको क्या करना है। सात बजे लोग अपने घर में चल रहा टीवी, हाथ में बज रहा फोन, मेज पर रखा लैपटॉप समेत सभी डिजिटल गैजेट्स बंद कर देते हैं। गांव के लोग घरों में जाकर भी चेक करते हैं कि डिजिटल गैजेट्स बंद हुए हैं या नहीं। डेढ़ घंटे के लिए डिजिटल दुनिया को ये लोग टाटा बाय-बाय कर देते हैं।
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कोरोना काल में आया था विचार
सरपंच विजय मोहिते ने इस गांव में ये पहल शुरू की है। उनका कहना है कि कोरोना काल में जब सब कुछ बंद था, तब लोगों को ये स्क्रीन की लत लग गई थी। जिससे पीछा छुड़वाना सबसे बड़ा चैलेंज था। शिक्षकों का भी मानना है कि कोरोना काल के बाद जब बच्चे स्कूल में आए थे, तो पढ़ाई में मन नहीं लगा पा रहे थे। स्कूल के बाद बच्चों का ज्यादा समय स्क्रीन पर ही गुजर रहा था।
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डिजिटल डिटॉक्स की ये पहल हर गांव, हर शहर में शुरू होनी चाहिए। जिससे लोग आपसी रिश्तों को मजबूत बना सकें।