भारत त्योहारों का देश है। यहां हर त्यौहार धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जिस प्रकार भारत में हर प्रदेश के साथ बोली बदलती हैं। उसी तरह यहां के राज्यों में अलग-अलग मान्यताओं के साथ अनोखे त्योहार मनाए जाते हैं। लेकिन क्या अपने कोई ऐसा त्योहार सुना या देखा है जहां लोग खुशी-खुशी मारने या मरने को तैयार हो। आज हम आपको ऐसे ही त्योहार के बारे में बता रहे हैं जहां लोग अपनी खुशी से मार खाते हैं।
हम बात कर रहें हैं आंध्र प्रदेश में मनाए जाने वाले बन्नी त्योहार के बारे में, जहां मूर्तियों पर कब्जा करने के लिए नकली लड़ाई की जाती है। लेकिन इस दौरान तमाम लोगों को चोट लगने की जानकारी सामने आती है इसलिए यहां आपात स्थिति के लिए डॉक्टर और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ को तैयार रखा जाता है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस त्योहार पर रोक लगाई थी। जिसका कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि स्थानीय लोग इसे अपनी प्राचीन प्रथा मानते हैं।
क्या है बन्नी त्योहार
आंध्र प्रदेश का अनोखा त्यौहार बन्नी हर साल दशहरा उत्सव यानी कि विजय दशमी की रात को मनाया जाता है। इस दिन सैकड़ों की संख्या में पुरुष आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के देवरगट्टू मंदिर की ओर जाते हैं। सभी पुरुष एक दूसरे को मारने के लिए अपने साथ लंबी लंबी लाठियां लेकर चलते हैं। देवरगट्टू मंदिर आंध्र प्रदेश और कर्नाटक दोनों राज्यों की सीमा पर स्थित है इसलिए यहां दोनों तरफ के लोग पहुंचते हैं।
आधी रात को अनुष्ठान के बाद माता पार्वती (मलम्मा) और शिव (मल्लेश्वर स्वामी) की मूर्तियों को पहाड़ी की तलहटी में नेरनेकी तक लाया जाता है। पूजा और ‘ कल्याणम’ करने के बाद’, देवताओं की मूर्तियों को किसी कपड़े से छिपा कर पहाड़ी से नीचे लाया जाता है। यह ‘विजय परेड’ माला-मल्लेश्वर (शिव) द्वारा राक्षस की हत्या का प्रतीक है। इस दौरान कुछ भक्त मूर्तियों की रक्षा करते हैं तो कुछ लोग मूर्ति चुराने की पुरजोर कोशिश करते हैं।
जो लोग मूर्तियों को हाईजैक करने की कोशिश करते हैं उन्हें राक्षस की तरफ से शामिल समूह कहा जाता है मूर्तियों पर अपना नियंत्रण करने के लिए दोनों समूह एक दूसरे पर लाठियों से हमला करते हैं। इस दौरान भक्ति एक अजीबो गरीब रूप धारण कर लेती है। इसे देखने के लिए हजारों लोग शामिल भी होते हैं। अपनी रस्मों के साथ यह जुलूस भोर तक चलता रहता है।
हर साल इस उत्सव के दौरान बहुत लोगों के घायल होने की जानकारी आती है इसलिए किसी भी आपात स्थिति के लिए डॉक्टर और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ को तैयार रखा जाता है अगर कोई गंभीर रूप से घायल होता है तो उसे अस्पताल भिजवाया जाता है। यह त्योहार विजयनगर साम्राज्य के वक्त से चल रहा है। माना जाता है कि यह त्योहार माला-मल्लेश्वर (शिव) द्वारा राक्षस की हत्या का प्रतीक है।
Also read – माता के इस मंदिर में खून चढ़ाकर किया जाता है मां को खुश, यह है मान्यता