देश में वेस्टर्न कल्चर के बाद अब हसल ( hustle) कल्चर धीरे-धीरे अपनी जगह बनाता जा रहा है। यह कल्चर कपड़े, रहन सहन, बोलचाल से संबंधित नहीं है बल्कि आपके वर्किंग स्टाइल से जुड़ा हुआ है। दरअसल कंपनियों द्वारा लोगों को ‘कड़ी मेहनत करो, व्यस्त रहो और अधिक करो’ के नियमों में बांधा जा रहा है।
इस ओवरवर्क के कल्चर में कब कर्मचारी गधे की तरह काम करने लग जाता है उसे खुद नहीं पता होता। वह ज्यादा से ज्यादा समय कंपनी के काम में लगाता है। इसके लिए कंपनी बेस्ट एम्प्लॉई अवॉर्ड, जरूरतों को पूरा करना, अचानक छुटि्टयां देना और गिफ्ट देना जैसे लुभावने ऑफर भी देती है। इन लुभावने अवसरों के लिए इस दौरान वह खुद की और अपने परिवार की प्राथमिकता को भी दांव पर लगा देता है।
इस कल्चर में कंपनी के टारगेट प्राथमिकता बनते हैं जिसके लिए काम करने के घंटों में वृद्धि करता है। अन्य साथियों से अधिक काम करने की ललक उसे ऑफिस वर्क में ही व्यस्त रखती है। इन मल्टीनेशनल कंपनी के लोगों की दुनिया ऑफिस तक सीमित हो गई है। इससे पारिवारिक संबंध, सामाजिक संबंधों पर तो असर पड़ ही रहा है साथ ही यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक साबित होता है। इस लेख में एक्सपर्ट की मदद से हम आपको बताएंगे हसल कल्चर क्या है और इसके दुष्प्रभाव क्या हैं…
क्या है हसल कल्चर
हसल कल्चर एक ऐसा विचार है जिसमें काम और सफलता ही केंद्र है। इसके लिए अपने परिवार और पर्सनल टाइम को भी त्यागना होता है। इसमें व्यापक स्तर पर कड़ी मेहनत का आग्रह किया जाता है। बीमार होने के बावजूद भी लगातार ओवरवर्क के लिए प्रोत्साहन मिलता है। इस कल्चर के तहत बताया जाता है अपने लक्ष्यों के पाने के लिए खुशी की हर चीज को त्यागना होगा और सिर्फ कड़ी मेहनत करनी होगी। दिन के 24 घंटों में विश्राम के समय भी काम के बारे में ही सोचने की सलाह मिलती है। यह work holism (काम समग्रता) की तरह है। इस दौरान लोगों से असंभव अपेक्षाएं रखी जाती हैं।
दिल और दिमाग को रोगी बना रहा है हसल
इंडिया काउंसिल रजिस्टर्ड मनोवैज्ञानिक डॉ. नेहा मेहता ने बताया कि यह कल्चर सामाजिक और पारिवारिक संबंधों पर चोट करता है। परिवार को दिया जाने वाला समय जब कंपनी में ही खत्म हो जाता है तो रिश्तों में दरारें पड़ जाती हैं। सामाजिक और देश के हित के कर्तव्य भुला दिये जाते हैं। वहीं अब यह कल्चर लोगों के दिल और दिमाग पर बुरा असर डाल रहा है। यूपेरियन देशों के बाद मल्टी नेशनल कंपनियों के जरिए यह कल्चर देश में भी शुरू हो गया है। लोगों को हर समय ईमेल भेजकर या घर से काम करने का लोभ देकर ऑफिस के काम में ही लगाकर रखा जाता है। डॉ नेहा ने बताया कि इस कल्चर से
- हाई ब्लड प्रेशर
- दिल का दौरा,
- स्ट्रोक सिरदर्द,
- कब्ज,
- अनिद्रा,
- थकान,
- तनाव के मरीज बढ़ रहे हैं। इसके साथ ही लगातार स्क्रीन पर काम करने से आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
इस तरह बचने के करें प्रयास
काम का दायरा बनाएं
जैसे ही आपको पता चले की आप हसल कल्चर में फंस रहे हैं तो काम का दायरा बनाएं। आपके पद के हिसाब से आपको कितना काम करना चाहिए इसे सीमित करें और जितना जल्दी हो सके अपने बॉस को अपने काम के दायरे बता दें।
अपनी प्राथमिकताएं तय करें
जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्राथमिकताएं तय करनी चाहिए। उनकी प्राथमिकता परिवार, शिक्षा, समाज या काम कुछ भी हो सकती हैं। इस दौरान याद रखना चाहिए कि प्राथमिकता को कितना समय दे रहे हैं। कहीं एक काम को पूरा करने के चक्कर में और चीजें छूट तो नहीं रही हैं।
अपना ऑफ लेना न भूलें
कर्मचारियों के लिए जरूरी है कि वह किसी भी कीमत पर अपना ऑफ काॅम्प्रमाइज न करें। वीक ऑफ उनका अधिकार है। यदि वे अपने वीक ऑफ के दिन ऑफिस जाते भी हैं तो अपना कॉम्प ऑफ लेना न भूलें।
चार बार हां तो एक बार करें ना
कंपनी के किसी भी काम को करना बेस्ट है लेकिन यह ओवरवर्क यदि आपके पर्सनल टाइम को भी खत्म कर रहा है तो धीरे-धीरे बॉस को ना कहना भी शुरू करें। कम से कम चार बार काम की हां करने के बाद एक बार ना जरुर करें।
प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को रखें अलग
काम में व्यस्त रहना ठीक है, लेकिन अति नुकसानदायक साबित हो सकती है। इसलिए अपनी प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को अलग रखें और दोनों को निश्चित समय देना न भूलें। ओवरवर्क के बाद भी अगर आप पर्सनल लाइफ में अच्छे हैं तो स्ट्रेस कम हो सकता है।
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Companies to aajkl employees ka khoon he choos leti hain
Employee ko khud ko he aisa bnana hoga ki work life aur personal life dono ko properly balance kar sakein.
शरीर को मशीन न बनाएं !
दिमाग के संतुलन के लिए आराम और
नींद भी जरूरी है! खानपान का भी रखें ख्याल!
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