अब मेरी कोई सुनता नहीं है मैं बच्चों को नहीं समझ पा रहा हूं, बच्चे मुझे नहीं समझ पा रहे हैं। सबकुछ कितना बदल गया है। आज से तीस चालीस साल बाद क्या हम भी ये ही बोलने वाले है। क्या हम समय के अनुरुप खुद का ढ़ाल पाएंगे या नहीं। तो चलो आज अपनी बात में बात बुढ़ापे की करते हैं। हम सबको बुढ़ा होना, बुढ़ापा सब में आएगा। क्या अपने साथ भी वही होगा जो अब अपने बुजुर्गों के साथ हो रहा है। तो चलिए जानते हैं।
बुढ़ापे की परिभाषा
पिचके गाल, पोपला मुंह, लड़खड़ाती जुबान, झुके कंधे, हाथ में लाठी, शायद सुनना भी कम हो जाएं, खैर दिखना तो आजकल जवानी में ही कम हो जाता है। बुढ़ापे की परिभाषा यही है। नाम सुनते ही दिमाग में यही सब घुमता है।
खुद को बुढ़ा मान रहे हैं आप
बुढ़ापा आने पर लगता है, एक उम्र हो चुकी है। सही लगता है आपको बुढ़ापा पुरी उम्र का अनुभव होता है। आप उम्र का एक पड़ाव पार कर जाते हैं। नई पीढ़ी का भविष्य निर्धारित करता है बुढ़ापा। कंधे जो आपके झूक गए हैं, ये अपने आप नहीं झूके है, आपने परिवार को उठाने के लिए अपने कंधे झूका लिए हैं। सुनना कम थोड़ी होता है बस खुद को कुछ भी सुनने के काबिल नहीं समझते आप। आपने खुद को बुढ़ा मान लिया है। खुद को झोंक दिया है उम्र के इस नीरस पड़ाव में। खुद को बुढ़ा मानने लगे हैं आप।
परिवार को दी है आपने एक उम्र
आपने अपने बच्चों को काबिल बनाया है। उनके लिए अपनी पूरी उम्र लगा दी। आपकी बदौलत तो वो अपनी पहचान बना पाए हैं। आपने ही उनको मंजिल के सुनहरे ख्वाब बुनना सिखाया है। जीवन जीने का सलीका सिखाया है। आपने अपनी बेटी की शादी के लिए तब से पैसे जोड़ने शुरु किए जब वो मुश्किल से छह महीने की हुई होगी। बेटे का खुद का घर हो इसलिए आपने अपने खर्चों पर लगाम लगा दी। आप उस दिन से मेहनत ही तो कर रहे हैं। आपने अपनी सारी जमापूंजी अपने बच्चों पर खर्च कर दी या उनके लिए छोड़ दी। बुढ़ापे में आकर आपकी स्मरण शक्ति भी कमजोर हो गई है। आपको ये भी याद नहीं है कि आपने कड़ी मेहनत की है, अपने बच्चों का भविष्य बनाने के लिए।
बुढ़ापे की लाठी बनने का वक्त आया तो कोई नहीं है साथ
आपने सब कुछ अपने बच्चों के लिए किया। आपने अपने बच्चों को जितना समय दिया है। उनसे आप उसका थोड़ा सा हिस्सा मांग रहे हो। आपके बच्चे भी अब बहुत व्यस्त हो गए हैं, क्योंकि वो अपने बच्चों के लिए कमा रहे हैं। लेकिन आपको अपना हक उनसे मांगना पड़ रहा है जिनके हक के लिए आप खुद से लड़े हो। आप अपना हक मांगों लेकिन गर्व से। अपने बच्चों के सामने गिड़गिड़ाना क्यों है, जब आपने उनके लिए इतना कुछ किया है तो उनका फर्ज बनता है आपकी बुढ़ापे की लाठी बनने के लिए।
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बुढ़ापा अनुभव है पूरी उम्र का
आप ये मत सोचिए कि आप बुढ़े हो गए हैं। आपको ये सोचना है कि आप परिपक्व हुए हैं। आपको ये नहीं सोचना कि जमाना बदल गया है, आपको ये सोचना है कि हमने जमाने को बदला है।आपने दौरों को बदलते देखा है। बुढ़ापे में आकर आप इतने नीरस क्यों हो रहे हैं। नीरसता का भाव मनुष्य को जड़ कर देता है और जड़ता का भाव मनुष्य को कुछ समझने ही नहीं देता। आपने इस उम्र में आकर अपने सार शौक क्यों मार लिए। खुद को क्यों भूलने लगे हैं।
समय के साथ खुद को ढ़ालना है चुनौती
बुढ़ापे में सबसे ज्यादा चुनौती खुद को समय के अनुकुल ढ़ालना होता है। इस चुनौती पर खरे उतरकर ही हम बुढ़ापे की जंग जीत सकते हैं। नई पीढ़ी के अनुसार खुद को ढ़ालना है। युवाओं की सोच के साथ आपको अपनी सोच मिलानी है। आपको अपने विचार उनपर थोपने नहीं है। बस उनको अपने अनुभव बताने हैं। आपने एक जमाना देख रखा है। आपके पास उम्र का खुबसूरत पड़ाव है। इस बुढ़ापे को खुद पर हावी नहीं होने देना है। बुढ़ापे में शौक मारने नहीं है बल्कि पालने हैं।
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शरीर का थक जाना बुढ़ा होना नहीं
उम्र के साथ आप बस थोड़े कमजोर हुए हैं। समय ने आपसे थोड़ी आपकी शक्ति छीन ली है। आपका कमजोर होना आपकी उम्र पर निर्भर कर रहा है। शरीर से बुढ़ा होना कोई बुढ़ापा थोड़ी होता है। आपके विचार, आपकी सोच वो तो अभी भी आपके कंट्रोल में है। उनको बुढ़ा ही मत होने दो। अपने विचारों को हमेशा जवान रखो। किसी की मजाल आपको कोई बुढ़ा बोल दे।
उम्र से बुढ़ा होना कोई बुढ़ापा आना नहीं होता। जब तक हम अपने विचारों से भावनाओं से बुढ़े नहीं होते तब तक बुढ़ापा नहीं आता। इसलिए आपको अपने विचारों को बुढ़ा नहीं होने देना है। आपके विचारों में अब भी इतनी प्रबलता, इतनी कठोरता है कि आप हर नौजवान को बता सकते हैं कि, शरीर से बुढ़ा होना कोई बुढ़ापा नहीं होता। जब तक आपके विचार जवान है आपको कोई बुढ़ा नहीं कर सकता। सोच में नयापन है, विचारों में खुबसूरती है तो बुढ़े थोड़ी हुए हैं आप। शरीर का क्या है थोड़ा सा थक जाता है अपनों के लिए कमाते-कमाते। शरीर थक जाता है, लेकिन सोच कभी नहीं थकती। और जब तक सोच नहीं थकती हम बुढ़े नहीं हो सकते।