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जब भी किसी से मनमुटाव होता है या बहस होती है तो मुंह से मधुर वाणी में गालियों की बौछार शुरू हो जाती है। ज्यादातर ये बौछार पुरुष करते हैं लेकिन गालियां महिलाओं पर केंद्रित ही देते हैं। क्या कभी आपने सोचा है कि ये गालियां यदि पुरुषों पर होती तो…।

ये गालियां सिर्फ झगड़े, बहस या मनमुटाव पर ही नहीं सामान्य बातों में भी अवतरित होती रहती हैं। हंसी ठहाकों के बीच मुंह से गाली का निकलना सामान्य है। देश में जिस मात्रा में इनका प्रयोग किया जाता है उनसे अहसास होता है कि गालियां भी भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। लेकिन जिस संस्कृति में महिलाओं को आदर देने की बात कही जाती है वहीं ये सभी गालियों महिलाओं पर ही केंद्रित क्यों हैं? आखिर कौन सी एसी वजह है जिसकी वजह से गालियों के प्रयोग के बिना झगड़े पूरे नहीं होते, बदला पूरा नहीं होता और मन को संतुष्टि नहीं मिलती। आज इस संबंध में हमने पुरुषों से ही बात की और इन गालियों के पीछे के राज को खोजने का प्रयास किया…

OTT ने दिया गालियों को बढ़ावा

ओवर द टॉप (ओटीटी ) प्लेटफॉर्म पर जो सीरीज आ रही है उनमें से ज्यादातर में भाषा बिगड़ती जा रही है। भाषा बद से बदतर होती जा रही है। लोग इसे ”इट्स फ़ॉर फ़न” कहकर इस्तेमाल कर रहे हैं। यहां तक कि परिजनों द्वारा बच्चों के आगे ही गालियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। फिल्मों में गालियों की भरमार होती है। जिसका प्रभाव बच्चों और बड़ों पर पड़ रहा है। 

बना दिया गालियों का संग्रह

महिलाओं पर केंद्रित गालियों को समाज से हटाने के मक़सद से दो युवतियों ने ‘द गाली प्रोजेक्ट’ शुरू किया। इसमें गालियों के नए विकल्प दिए गए। ऐसे शब्दों का संग्रह बनाया जिससे लोग गाली भी दे सकें और तीसरे व्यक्ति यानि महिला या कोई समाज को बीच में लाया ना जा सके।  ऐसे शब्दों का विकल्प दे रहे हैं जिसमें अपनी बात भी कह दें और वो फ़नी भी हो।

इस प्रोजेक्ट से जुड़े सदस्यों ने बताया कि लोगों द्वारा दी जाने वाली सभी गालियों काे लिखा गया। जिनमें  क़रीब 800 शब्द ऐसे मिले थे जो महिला विरोधी थे, जातिगत या लिंग भेदभाव को ही दर्शाते थे। लेकिन 500 ऐसे शब्द या गालियां थीं जिन्हें साफ़ सुथरा कहा जा सकता है। ऐसे शब्दों को ही मिलाकर गालियों का संगह बनाया है। 

नई गालियां हो रही अरेंज

हमारे समाज में महिलाओं को पुरुषों के सामान्य नहीं समझा गया। पुरुष को हमेशा से ही ऊपर रखा गया है। ऐसे में गालियां भी महिला आधारित रहीं। लेकिन टाइम चेंज हो रहा है। महिलाएं हर क्षेत्र में आगे हैं। गालियां देना ही उचित नहीं हैं। महिलाओं पर आधारित गाली देना तो बिलकुल अनुचित है। बदलते समय के साथ नई गालियां अरेंज हो रही हैं। लोग  इग्लिश में गालियां दे रहे हैं। लेकिन लोगाें की आदत बनी हुई है। यहां तक कि औरतें ही महिला केंद्रित गालियां देती हैं

– देवेंद्र कुमार

महिला को केंद्र में रखकर पुरुष के जमीर को झंकझोरने के कोशिश

प्राचीनकाल से महिलाएं पुरुषों का सम्मान व आत्मविश्वास रही हैं। आज भी है। इन्हीं के लिए वह जीवन में अथक परिश्रम करता है। यही वजह है कि क्रोध अथवा जय-पराजय की स्थिति में उसे अत्यधिक आघात पहुंचाने के लिए इसी सम्मान को ठेस पहुंचाई जाती है। इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि पुराने समय में एक राज्य आक्रमण कर जब दूसरे पर विजय प्राप्त करता था तो सबसे पहले वहां की रानियों को अधिकार में लेने का प्रयास होता था। आज भी मानसिकता वही है। गालियां वह साधन हैं, जहां महिलाओं को केंद्र में रखकर एक पुरुष दूसरे पुरुष के जमीर को झंकझोरने का प्रयास करता है।

कमल कुमार वाष्णेय, बिजनेसमैन

 

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