WhatsApp Group Join Now

भगवा रंग के वस्त्र पहने हुए हम साधु-संतो को बचपन से ही देखते आ रहे हैं। हिदूं धर्म में भगवा रंग का बहुत महत्व है। भगवा रंग को पवित्र माना जाता है। प्राचीन समय से ही इस रंग का महत्व है। आज के इस लेख में जानते हैं कि साधु संत भगवा रंग ही क्यों पहनते हैं।

भगवा का अर्थ

आध्यात्म में भगवा रंग को बहुत महत्व दिया जाता है। भगवा शब्द भगवान से बना हुआ है जिसका अर्थ होता है देवता या त्याग करने वाला।

माता पार्वती की है कहानी

साधु-संतों के भगवा पहनने के पीछे शास्त्रों में एक कहानी बताई गई है। सतयुग में भगवान शंकर ने अमर कथा नामक ग्रंथ का जिक्र किया है। इस ग्रंथ में योग, शरीर, आत्मा आदि के बारे में बताया गया है। बताया जाता है कि भगवान शिव ने पार्वती को जब इसके बारे में बताया था, तो उनके अंदर त्याग करने की इच्छा जाग गई थी।

जब पार्वती मां को त्याग करने की इच्छा हुई, तो उन्होंने अपनी नसें काट ली थी। उसके बाद से ही इस रंग का महत्व हो गया था। नसें काटने की वजह से उनके कपड़े खून से लाल हो गए थे। गोरक्षनाथ पार्वती के पास प्राथना करने गए तो, उन्होंने उनके लाल रंग से सने कपड़े देखें। तभी से ही केसरिया या लाल रंग का महत्व बढ़ गया।

 वेदों में भी केसरिया रंग का जिक्र

वेदों में केसरिया रंग का जिक्र आता है। ऋग्वेद ग्रंथ को सबसे प्राचीन ग्रंथ कहा जाता है। इसका पहला मंत्र है

ॐ अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्।।

इस श्लोक का अर्थ है “मैं अग्नि का सम्मान करता हूं, अग्नि के देवता, त्याग के महंत, ज्ञान के दाता”।

केसरिया रंग अग्नि का प्रतीक है। अग्नि को भी हिदूं धर्म में भगवान माना जाता है। माना जाता है कि भगवा रंग अग्नि के सबसे करीब है, इसलिए इसका  महत्व और बढ़ जाता है।

ये भी पढ़े- 10 मिनट में बन कर तैयार हो जाता है नेचुरल साबुन, जानें विधि

साधु क्यों पहनते हैं भगवा

माना जाता है कि पहले जब साधु-संत कहीं जाते थे, तो साथ में अग्नि लेकर जाते थे। समय बदलने के साथ ये रिवाज भी बदल गया और फिर साधु संत दूसरे आश्रम में जाते समय अग्नि की जगह भगवा रंग का ध्वज लेकर जाने लगे। उनका मानना था कि भगवा रंग अग्नि का प्रतीक होता है।

ये भी माना जाता है भगवा रंग सूरज ढ़लने और सूरज उगने का भी प्रतीक है। ये रंग पवित्र है और शुद्धता का प्रतीक है। भगवान हनुमान का भी इस रंग से गहरा नाता है। उनको भी केसरिया रंग का सिंदूर भाता है। साधू संतों का ये भी मानना है कि ये रंग ब्रह्मचर्य का प्रतीक है।

भगवा पहनने का वैज्ञानिक कारण

भगवा रंग को शरीर के सात चक्रों से जोड़कर भी देखा जाता है। हमारे शरीर के सातों चक्र सातों विशेष रंगों से जुड़े हुए होते हैं। हर रंग को हमारा शरीर अलग तरह से देखता है। माना जाता है कि लाल चक्र हमारे शरीर में सबसे अहम है और ये जेनेटिल एरिया से जुड़ा हुआ होता है। बौद्ध धर्म में भी इस रंग को खुशहाली का प्रतीक माना जाता है। भगवा  चक्र को स्वाधिस्थान भी कहा जाता है।  कलर वाइब्रेशन थेरेपी के अनुसार ये रंग मस्तिष्क को खुश रहने वाले सिग्नल्स देते हैं।

ये भी पढ़े- कई बीमारियों से बचा सकते हैं कद्दू के बीज

ये भी पढ़े- जानें, हवन में क्याें कहा जाता है स्वाहा

WhatsApp Group Join Now

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *