नींबू की पोष्टिकता के चलते इसकी मांग में काफी बढ़ोतरी हुई है। नींबू की खेती करके किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। दरअसल पारंपरिक खेती में भी किसानों को सही लाभ नहीं मिल पा रहा है। साथ ही किसानों को मौसम की मार भी झेलनी पड़ रही है। ऐसे में बागवानी की फसलों से काफी मुनाफा कमाया जा सकता है। हालांकि जरूरी है कि यह खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाए। इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे करें नींबू की खेती….
नींबू की खेती वैज्ञानिक खेती करने के लिए इन चरणों का पालन करें
- जलवायु: नींबू की खेती के लिए शुष्क और ऊष्मात्मक जलवायु उपयुक्त होता है। अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में नींबू की उत्पादन नहीं होता। नींबू की उत्पादन के लिए अधिकतम तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान 5 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। 75 से 200 सेंटीमीटर की बारिश वाले क्षेत्र में नींबू की खेती अच्छी होती है।
- मिट्टी: नींबू की खेती के लिए लोमदार, खारा और अच्छी निर्धारित द्रवता वाली मिट्टी उपयुक्त होती है। नींबू का पौधा लगाने के लिए मिट्टी का PH Value 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए। कम या ज्यादा होने पर इसमें उचित खाद की मात्रा मिलानी चाहिए।
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बुबाई: नींबू की बुवाई का समय ज्यादातर स्थानों पर अप्रैल से मई महीने के बीच होता है। बुवाई के बाद, नींबू के पौधे को नियमित रूप से पानी देना चाहिए।
- जल संसाधन: नींबू की खेती के लिए अधिक जल संसाधन उपलब्ध होना चाहिए। नींबू पौधों को नियमित रूप से पानी देने से अधिक उत्पादन होता है।
- सिंचाई: अधिक उत्पादन के लिए नींबू के पौधों को सिंचाई समय पर जरूरी होती है। गर्मियों में 10 दिन जबकि सर्दियों में 20 दिन के अंतर पर ही खेत में सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई के वक्त खेत में जलभराव की स्थिति नहीं होनी चाहिए।
नींबू की खेती से लाखों में कमाई
आज के समय में नींबू की मांग बहुत है। नींबू का इस्तेमाल खाने पीने के अलावा ब्यूटी प्रोडक्ट्स व अन्य प्रोडक्ट्स में हो रहा है। जिसकी वजह से इसकी मांग बनी रहती है। नींबू के पेड़ पर तीन साल बाद फल लगना शुरू हो जाता है। फलों का उत्पादन नींबू के पेड़ की समृद्धि, पोषण, तकनीकी विविधता, औषधीय तत्वों आदि पर भी निर्भर करता है। यह करीब 30 साल तक फल उत्पादन करता रहता है। बढ़ती मांग के मद्देनजर 80 से 100 रुपए प्रति किलो तक नींबू का बाजार में भाव मिल जाता है। एक हेक्टेयर में नींबू की खेती से किसान 5 से 7 लाख तक कमा सकता है।
नींबू की खेती में लगने वाले कुछ सामान्य रोग
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- पत्तों का समान्तर छिद्रक रोग (Citrus Canker) – इस रोग में पेड़ के पत्तों पर छोटे छोटे से समान छिद्र बन जाते हैं, जो अस्वस्थ और सूखे फलों में विकसित हो जाते हैं।
- फुट-रोट रोग (Foot Rot) – इस रोग में पेड़ की जड़ें सड़ जाती हैं, जिससे पेड़ शीघ्र ही मर जाता है।
- वर्मी कम्पोस्ट वर्म (Vermi Compost Worm) – इस रोग में भूमि में मौजूद कीटाणु नींबू के पौधों के जड़ों में प्रवेश करते हैं और उन्हें नष्ट कर देते हैं।
- सुड़का रोग (Gummosis) – इस रोग में पेड़ के टन्डे में सूखा और कच्चापन आता है और पेड़ से गोंद (Gum) निकलता है।
- लीफ माइनर रोग (Leaf Miner) – इस रोग में पत्तों पर सफेद या भूरे रंग के छोटे छोटे निशान दिखाई देते हैं, जो उनमें से पत्ती के अंदर जाकर उन्हें नष्ट करते हैं।
- काला फुफ्फुस रोग (Black Spot) – इस रोग में पत्तों पर काले या भूरे रंग के निशान दिखाई देते हैं।
Note: नींबू की बागवानी के लिए सही समय पर रोग प्रबंधन करना भी बेहद जरूरी है। किसानों को पौधे लगाते समय ही विशेष ध्यान रखना चाहिए। बुबाई करते समय ध्यान रखें कि स्वस्थ पौधा ही लगाएं। स्वस्थ और वायरस रहित पौधा होने से रोगों की संभावना कम हो जाती है।
कौन सी किस्म लगाएं
नींबूकी सबसे अच्छी वैरायटी कागजी बारहमासी है। किसान उद्यान विभाग से संपर्क कर खेती के लिए कागजी नींबू के पौधे प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा हम बता रहे हैं दुनियाभर में उगाए जाने वाली निंबू की किस्म
- नींबू (Lemon) – यह प्रजाति दुनिया भर में उगाई जाती है और इसकी एक विशेषता उसके अमलते होने की है।
- मैयर लेमन (Meyer Lemon) – यह जापान से लाए गए नींबू की एक प्रजाति है जो सुंदर फलों के लिए जानी जाती है।
- लीमी (Lime) – यह प्रजाति अमेरिका में पायी जाती है और फलों में अधिक अम्लता होती है।
- कगजी नींबू (Citrus limetta) – यह प्रजाति भारत में पायी जाती है और उत्तर भारत में उगाई जाती है।
- काफिर नींबू (Citrus jambhiri) – यह प्रजाति अफ्रीका में पायी जाती है और उसके फल बड़े और अमले नहीं होते हैं।
- नागपुरी संतरा (Nagpur Orange) – यह प्रजाति भारत में पायी जाती है और उत्तर भारत में उगाई जाती है।