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भगवान शिव के प्रिय व्रतों में से एक है पशुपति व्रत।
भगवान शंकर तीनो लोकों के स्वामी हैं। देवों के देव महादेव को प्रसन्न करना बहुत ही आसान है। कहते हैं भोलेनाथ बड़े ही भोले हैं वह आसानी से अपने भक्तों के कष्ट दूर कर देते हैं। और उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं।

पशुपति व्रत भगवान को बहुत प्रिय है। इस व्रत के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। लेकिन इस व्रत की महिमा बहुत है। शास्त्रों के अनुसार पशुपति व्रत रखने से व्यक्ति की हर इच्छा पूरी होती है। जीवन की बड़ी से बड़ी परेशानी इस आसन व्रत को रखने से दूर हो जाती है। पांच सोमवार के इस व्रत को रखने वाले भक्तों का छठा सोमवार आने से पहले ही समस्या का समाधान हो जाता है।

पशुपति व्रत रखने के नियम

पशुपति व्रत को रखना बहुत ही आसान है। हर व्रत को रखने के कुछ नियम होते हैं। इसी प्रकार इस व्रत के भी कुछ नियम है जिनका पालन करना बहुत जरूरी है। ये व्रत रखने से पहले आप भी सभी नियमों को अवश्य जान लें। नियमों के अनुसार व्रत रखने से भगवान शिव अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

इस व्रत को रखने के लिए कोई शुभ मुहूर्त या कोई खास दिन की जरूरत नहीं पड़ती। इस व्रत को आप किसी भी महीने के कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष में कर सकते हैं। बस ध्यान रखें कि इस व्रत को आप सोमवार को रख सकते हैं। पशुपति व्रत 5 सोमवार तक रखा जाने वाला व्रत है। जिस का उद्यापन करना भी जरूरी होता है।

इस व्रत को रखने वाले भक्तों को सोमवार सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर भगवान शिव के मंदिर जाना है और उनका जलाभिषेक करना है। इसके बाद भगवान शिव पर बेलपत्र और पंचामृत चढ़ाए। भोलेनाथ को अर्पित करने के लिए आप थाली में रोली, चावल, फूल, फल, प्रसाद रख के ले जा सकते हैं। भगवान शिव की पूजा करने के बाद सुबह के समय आप फलहार करें।

भगवान शिव के सामने पांच दिए जलाएं

शाम के समय भगवान शिव को भोग लगाने के लिए कुछ मीठा बनाकर मंदिर जाएं। प्रसाद के तीन हिस्से कर लें। जिसका एक हिस्सा अपने लिए निकाल लें और बाकि दो हिस्सों को मंदिर में भगवान शिव को चढ़ा दें। इस दौरान भगवान शिव के सामने अपनी मनोकामना भी रखें। इस व्रत को करते वक्त भगवान शिव को पांच दिये जलाए जाते है।

भगवान शिव को पंचांनद के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए पंच यानि पांच दिये जलाए जाते है। लेकिन शाम के समय पूजा करने के लिए आपको अपने साथ 6 दीपक लेकर जाने है। जिनमें से 5 दीपक आपको मंदिर में भगवान भोलेनाथ के सामने जलाने हैं और एक को वापिस घर लाना है।

एक दिए को आपको घर में प्रवेश करने से पहले जला कर घर के राइट साइड में रखना है। इसके बाद अपनी मनोकामना मांगते हुए घर के प्रवेश करें। अपने व्रत को खोलते समय प्रसाद ग्रहण करें। इसी विधि विधान से आपको 4 सोमवार के व्रत रखने हैं और 5 वें सोमवार को उद्यापन करना है।

इस तरह करें व्रत का उद्यापन

पांचवे सोमवार को भी इसी तरह भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के बाद अपनी मनोकामना को ध्यान में रखते हुए उद्यापन में महादेव को एक नारियल चढ़ाएं। अगर हो सके तो भगवान शिव को आप 108 बेलपत्र या फिर अक्षत चावल भी चढ़ाएं।

अगर आपके पास 108 बेलपत्र नहीं हैं तो आप अपने बेलपत्रों को धोने के पश्चात बार-बार उन्हें ही चढ़ा कर 108 पूरे कर सकते हैं। कहा जाता है कि एक बेलपत्र को भी धो-धो कर 108 बार चढ़ाया जा सकता है। इस तरह भगवान शिव की पूजा करने से छठे सोमवार तक आपकी हर इच्छा पूरी होगी।

इस व्रत को करते समय आपको हर समय भगवान शिव की प्रार्थना करनी है और उनके प्रति पूर्ण समर्पित होते हुए सच्चे मन से अपनी मनोकामना मांगनी है। इस दौरान आप सारा दिन मन ही मन भगवान शिव के इन प्रिय मंत्रों का जाप भी कर सकते हैं।

भगवान शिव के प्रिय मंत्र

ॐ नमः शिवाय
नमो नीलकण्ठाय
ॐ पार्वतीपतये नमः
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय
ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्त्तये मह्यं मेधा प्रयच्छ स्वाहा

पशुपति व्रत कथा

व्रत के दौरान सुनी जाने वाली कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव अपना भेष बदल कर एक चिंकारे का रुप ले कर निद्रा मे बैठे थे। तभी वहां सारे देवी देवता उन्हें खोजते हुए आ पहुंचे। वह सब उन्हें वापस ले जाने के प्रयास कर रहे थे की तभी चिंकारे ने नदी के उस पार छलांग लगा दी। इस छलांग से चिंकारे का सींग चार टुकडों मे टूट गया। तभी से वहां पशुपतिनाथ चतुर्मुख लिंग के रुप में प्रकट हो गए थे। वहीं से उनके इस रुप की पूजा अर्चना की जाने लगी।

पशुपति आरती

ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा ।
त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा ॥ ॐ जय गंगाधर …
कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने ।
गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने ॥ ॐ जय गंगाधर …
कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता ।
रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ ॐ जय गंगाधर …
तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता ।
तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता ॥ ॐ जय गंगाधर …
क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्‌ ।
इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …
बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता ।
किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता ॥ ॐ जय गंगाधर
धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते ।
क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते॥ ॐ जय गंगाधर …
रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता ।
चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां ॥ ॐ जय गंगाधर …
तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते ।
अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ ॐ जय गंगाधर …
कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्‌ ।
त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …
सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्‌ ।
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …
मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्‌ ।
वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्‌ ॥ ॐ जय गंगाधर …
सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्‌ ।
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ ॐ जय गंगाधर …
शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते ।
नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते ॥ ॐ जय गंगाधर …
अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा ।
अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा ॥ ॐ जय गंगाधर …
ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा ।
रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा ॥ ॐ जय गंगाधर …
संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते ।
शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ ॐ जय गंगाधर …

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