WhatsApp Group Join Now

हमारा समाज पितृसत्तात्मक समाज है। सदियों से चला आ रहा है, जो अधिकार पुरूषों को प्राप्त  है, वो समान अधिकार महिलाओं को प्राप्त नहीं होता है। आधुनिक समय में महिला पुरूषों के साथ-साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। घर की चारदिवारी से तो महिला बाहर निकल गई है, लेकिन सुरक्षित नहीं है न घर में और न ही बाहर।

सुरक्षा की लिहाज से घर एक ऐसी जगह है, जहां पर हर कोई सुरक्षित होता है, लेकिन महिलाएं वहां पर सुरक्षित नहीं है। महिलाओं के साथ घर में भी हिंसा होती है। जरूरी नहीं हिंसा शारीरिक ही हो, मानसिक, मौखिक, आर्थिक, लैंगिक भी हो सकती है। महिला को बचपन से ये सिखाया जाता है पति की सेवा करना और उसकी हर बात मानना धर्म है, अनुशासन में रहना उसकी मर्यादा है। समय के साथ बदलाव भी आए हैं। महिलाएं शिक्षित तो हुई हैं, लेकिन सुरक्षित नहीं।

अधिकारों के प्रति महिला नहीं है जागरूक

गुरूग्राम से वन स्टॉप सेंटर की इंचार्ज पिंकी ने बताया कि महिलाओं को अपने अधिकारों की जानकारी नहीं है। बहुत सी महिलाएं ऐसी है उनको पता ही नहीं की आपको घर में कोई टॉर्चर कर रहा है, तो आप इसके खिलाफ एक्शन ले सकती हैं।

महिलाएं खुद हैं जिम्मेदार

घरेलू हिंसा का शिकार होने वाली महिलाएं बहुत बार अपने अधिकारों के लिए खुद भी आवाज नहीं उठाती। उनका मानना होता है कि किसी तरह से उनका घर बस जाए। बहुत से केस में महिलाओं के उपर परिवार या समाज का दबाव होता है। बहुत सी महिलाएं ऐसी भी होती हैं जिनको फैसले लेने का कोई हक नहीं दिया जाता। उन पर विचार थोप दिए जाते हैं, जिनका पालन उन्हें करना होता है। कई महिलाएं आवाज उठा लेती हैं। बहुत सी महिलाएं है जो फैसले न लेने देने के अधिकार को अच्छा भी मानती है फैसले लेने को वो बोझ मानती हैं।

धीरे-धीरे हो रहा है बदलाव

इंचार्ज पिंकी का कहना है कि कई मामलों में पति पत्नी पर एकाधिकार भी समझ लेते हैं। उनका मानना होता है। मेरी पत्नी मेरे हिसाब से चलेगी। महिलाओं को लड़का न होने पर भी परिवार के ताने सुनने पड़ते हैं। ये भी एक प्रकार की मानसिक हिंसा है। पिंकी का कहना है कि देश में पूरी तरह से बदलाव नहीं आया है, लेकिन थोड़ा बहुत बदलाव जरूर आया है। अब महिलाएं पढ़ रही हैं। कंधे से कंधा मिलाकर पुरूषों के साथ चल रही हैं। घर को भी संभाल रही हैं।

इंचार्ज वन स्टॉप सेंटर, गुरूग्राम

मुद्दे को लेकर युवाओं की राय 

आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाली हर बात हिंसा

फरीदाबाद से राखी लांबा का कहना है कि हर वो चीज़ जो महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाए वो घरेलू हिंसा का ही रूप है। इसकी कोई परिभाषा नहीं है घर कि किसी भी महिला पर कोई ग़लत दबाव बनाया जाता है उसके सपनों को बेड़ियां पहनाई जातीं हैं वो घरेलू हिंसा है।

 राखी लांबा, फरीदाबाद



महिलाओं को अंदर ही अंदर किया जाता है टॉर्चर

गुरूग्राम से रीतु का कहना है कि पति का गाली देना या फिर  अंदर-अंदर महिलाओ को टॉर्चर करना भी एक घरेलू हिंसा ही है। जमाना भले ही कितना बदल जाए, लेकिन घरेलू उत्पीड़न और प्रताड़ना से आज भी महिलाएं त्रस्त हैं और  इसे चुपचाप सहती भी रहती हैं। आज के जमाने में महिलाएं अवेयर हो रही हैं। जब पानी सिर के ऊपर गुजर जाता है और उनकी सहनशक्ति जवाब देने लगती है तो वो इसके खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने पुलिस थाने पहुंचने लगी हैं। इस घरेलू हिंसा के विरुद्ध शासन भी बहुत संवेदनशील हैं और महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए उसने सख्त कानून भी बनाएं हैं, लेकिन फिर भी महिलाएं किसी न किसी रूप में घर में ही हिंसा का शिकार हो जाती है।

रीतु, गुरूग्राम



ये भी पढ़े- डिलीवरी के बाद डिप्रेशन से बचने के लिए सोसाइटी को समझने की जरूरत कि मां के पास भी है दिल

महिलाओं के लिए घर में सुरक्षित माहौल है जरूरी

रोहतक से प्रिया कुसुम का कहना है कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के आंकड़ों के अनुसार 29.3% भारतीय महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं। एक नई जिंदगी की शुरुआत के सपने सजा कर कोई लड़की दूसरे के घर में आती है। वह जब अपने ही साथी से ऐसे अत्याचार का सामना करती है तो उसके लिए यह मानसिक और शारीरिक तौर पर कितना कष्टदायी होगा यह समझा जा सकता है।

इस अपराध को रोकने के लिए आवश्यक है कि महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो और अपने प्रति हो रहे किसी भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सकें। इसके साथ ही जरूरी है कि समाज, सरकार और न्यायपालिका उन्हें सहयोग करें। जैसा कि बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा है “मैं किसी समुदाय की प्रगति को महिलाओं ने जो प्रगति हासिल की है उससे मापता हूँ।”  महिलाओं की प्रगति के लिए सबसे पहली शर्त है कि वह सुरक्षित माहौल में रहें।

 प्रिया कुसुम, रोहतक

बेटी पैदा होने पर समाज देता है ताने

हिसार से हिमानी का कहना है कि सभी महिलाएं इस हिंसा का शिकार होती है। जरूरी नहीं है कि कोई शारीरिक चोट पहुंचाए तो उसे ही हिंसा मानेगें। मानसिक रुप से जब कोई टॉर्चर करता है तो उसे भी हिंसा ही माना जाएगा। महिलाएं कहने को तो स्वतंत्र हैं, लेकिन आज भी उनपर बहुत दबाव है। लड़का पैदा नहीं होता तो एक औरत को समाज हीन दृष्टि से देखता है। उसको पल-पल ये अहसास करवाया जाता है कि उसने बेटी को नहीं किसी श्राप को जन्म दिया है। मानसिक रुप से परेशान करना भी हिंसा है।

हिमानी, हिसार

विचारों में असामनता के कारण भी होती है हिंसा

हिसार से सचिन शर्मा का कहना है कि ज्यादातर दहेज के कारण या फिर आपस में विचारों के न मिलने के कारण ये हिंसा होती है।  सचिन का मानना है कि इस बुराई के खिलाफ समाज को ही लड़ना होगा और सबको मिलकर प्रयास करना होगा कि महिलाओं को सुरक्षित माहौल मिले। आपस में विचारों का तालमेल बैठा कर इस हिंसा को खत्म किया जा सकता है।

सचिन शर्मा, हिसार

बच्चों पर पड़ता है बुरा प्रभाव

बिलासपुर से सौरभ का कहना है कि घरेलू हिंसा के चलते तलाक के मामले बढ़ रहे हैं।  जिस घर में बच्चे ये सब देखते है उनकी मानसिक ग्रोथ पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। बचपन में ही ये सब देखने पर वो इसको नॉर्मल समझ लेते है। कोई लड़की ये देखती है कि उसकी मां घरेलू हिंसा का विरोध नहीं कर रही है, तो हो सकता है कि अगर भविष्य में उसके साथ भी वही सब हो तो वो घरेलू हिंसा के विरोध में ना बोल पाए।

सौरभ, बिलासपुर

ये भी पढ़े-बेस्ट फ्रेंड से भी जलने लगती हैं लड़कियां, क्या है कारण








WhatsApp Group Join Now

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *