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किशोरावस्था बहुत नाजुक उम्र होती है, जिसमें युवाओं को गुस्सा जल्दी आ जाता है, बातों का बुरा बहुत जल्दी लग जाता है, कभी अपने आप खुश हो जाते हैं, कभी चिड़ जाते हैं। ये एक ऐसी उम्र है, जिसमें मूड बड़ी तेजी से बदलता है. किशोर अपनी बात कहने से हिचकिचाते हैं, उन्हें लगता है कि उनकी बात कोई नहीं समझ रहा है. कई बार तो नौबत यहां तक आ जाती है कि वे डिप्रेशन में चले जाते हैं या सबसे धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं. किशोरावस्था में युवाओं को माता- पिता का सबसे ज्यादा सपोर्ट चाहिए होता है अगर वो ना मिले तो उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन लंबे समय तक रह सकता है।

किशोरों से खुलकर बात करनी है जरूरी

12 से 18 साल की उम्र को टीनएज कहा जाता है. इस उम्र में या तो बच्चे बिगड़ जाते हैं या उनके जीवन को सही दिशा मिल जाती है।  इसमें टीनएजर्स के माता पिता अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. किशोर जब अपने मन की बात छिपाने लगते हैं और मानसिक रुप से परेशान रहने लगते हैं. असर उनकी पढ़ाई पर भी पड़ता है, ऐसे में माता- पिता को चाहिए कि वो अपने बच्चों से खुलकर बातें करें, उन्हें अपना दोस्त समझें और धैर्य के साथ अपने बच्चे की इस उम्र का सामाना करें।

टीनएजर्स पेरेंट्स से बना लेते हैं दूरी

मनोवेज्ञानिकों का मानना है कि टीनएज में बच्चे अपने माता-पिता से दूरी बनाने लगते हैं और अपनी बात छुपाने लगते हैं. किशोरों को नहीं पता होता है कि ऐसा करना उनके लिए नुकसानदायक है. पेरेंट्स को अपने बच्चों पर निगरानी रखनी चाहिए और दोस्त बनकर उनकी परेशानियों को हल करने की कोशिश करनी चाहिए. मनोवेज्ञानिकों के अनुसार इस उम्र में हार्मोन बड़ी तेजी से बदलते हैं जिनकी वजह से भी युवाओं के स्वभाव में तेजी से चेंज आने लगता है. युवक और युवतियां जब किशोरावस्था में कदम रखती हैं तो उनके शरीर में भी कई तरह के बदलाव आने लगते है और ये बदलाव बिल्कुल नए होते है उन्हें माता-पिता से कहने में हिचक महसूस होती है. ऐसे में पेरेंट्स को खुद आगे आकर उन्हें समझना होगा और उन्हें सपोर्ट करना होगा.

गलती करने पर डांटे नहीं

टीनएज में ज्यादातर युवा अपने दोस्तों के साथ ज्यादा रहना पंसद करने लगते हैं. पूरा दिन फोन पर लगे रहना या दोस्तों के साथ घुमना फिरना उन्हें अच्छा लगता है. ऐसे में अपने बच्चों पर हावी होने की बजाए उन्हें प्यार से समझाएं. कई बार इस उम्र में टीनएजर्स से गलतियां भी हो जाती हैं। पेरेंट्स को पता लगने पर वो मारपीट करते हैं, घर से बाहर नहीं जाने देते या फोन छीन लेते हैं. लेकिन वास्तव में टीनएजर्स को सुधारने का ये कोई तरीका नहीं है. माता-पिता को चाहिए कि वो बिल्कुल शांत रहें। अपने बच्चे की पूरी बात सुनें। उसको मौका दें और अपने जिंदगी की कुछ बातें बताकर उसको सीख देने का प्रयत्न करें। एक बात हमेशा याद रखें कि ये वो उम्र है जिसमें आप अपने बच्चों के सबसे चहेते भी बन सकते हो और उससे हमेशा के लिए दूर भी जा सकते हो।

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