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“घूंघट बैन करा दे ओ पिया” ये हर नारी के मन की बात है। हर महिला चाहती है इस घूंघट प्रथा को बंद करवाना। लेकिन कैसे इस प्रथा को खत्म करें? क्योंकि घूंघट बैन करवाने की मांग पर पिया जी ही बोल देते हैं “मारूंगा र सुसरी क मारुगा घने घूंघट ओपन तन जो करा”। असल में ये हरियाणवी सोंग सच्चाई है। समय इतना बदल जाने के बाद भी महिलाओं के लिए कुछ नियम और कानून अब तक नहीं बदले हैं।

महिला पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है। भले ही वो नाईट ड्युटी करने लगी हैं, हवाई जहाज उड़ाने लगी है, सेना में भर्ती होने लगी है। बड़े-बड़े पदों पर वो पुरुषों से दो कदम आगे चल रही है, लेकिन घर में घूंघट के पीछे अब भी उसके अरमान कहीं दफन हुए रखे हैं। असली बात में हमने घूंघट को लेकर कुछ महिलाओं के विचार जाने हैं चलिए एक नजर इनके विचारों पर।

क्यों करना पड़ता है महिलाओं को घूंघट

मुस्लिम शासकों ने ये रिवाज चलाया था। महिलाओं को परदे में रखना मुस्लिम शासकों का रिवाज था ऐसा माना जाता है। उसी के बाद से घूंघट के साथ महिलाओं का मान-सम्मान जोड़ दिया गया। जो महिलाएं घूंघट करती है, उसे समाज में आदर सम्मान मिलता है। जो महिलाएं घूंघट प्रथा के खिलाफ बगावत कर देती हैं, उन्हें चरित्रहीन बनाने में ये समाज कमी नहीं छोड़ता है।

औरत को परदे में ही रखना है तो उसे बाहर मत भेजो- सुजाता जागड़ा

सुजाता जागड़ा, हिसार

सुजाता का कहना है कि गांव में आज भी करीब पचास प्रातिशत औरतें बाहर जाकर भैंसों को चारा खिलाकर, दूध निकालकर घर चलाती हैं। और खुले में शौच भी करती हैं। अगर आप औरतों को परदे में ही रखना चाहते हैं तो उसे बाहर ही मत भेजो। अगर सोच ही नहीं बदलनी तो ऐसी पढ़ाई का क्या फ़ायदा। ऐसे में हमें समय के साथ चलना है तो सोच बदलनी होगी।

घूंघट में रहने वाली महिलाएं होती है अच्छी- मिनाक्षी शर्मा

        मिनाक्षी शर्मा, हिसार

हिसार से मिनाक्षी का कहना है कि घूंघट करने वाली महिलाओं को समाज में एक विशेष दर्जा प्राप्त होता है। उनका सब आदर भी करते हैं। माना जाता है घूंघट हम बुजुर्गों का आदर करने के लिए करते हैं। हमारा घूंघट करना बुजुर्गों की मान मर्यादा का प्रतीक है। जो महिलाएं घूंघट नहीं करती हैं उन्हें कोई अच्छा नहीं मानता। पीठ पीछे ऐसी महिलाओं की बुराई की जाती है।

घूंघट प्रथा थोपी गई है- मानवी नवीन नांदल

     मानवी नवीन नांदल, रोहतक

घूंघट प्रथा प्राचीन समय से चली आ रही है। ये प्रथा महिलाओं पर थोपी गई है ये कहना है रोहतक से मानवी का।  जब कोई चीज जबरदस्ती करवाई जाती है या थोपी जाती है तो वो फायदेमंद नहीं होती। ये महिलाओं का अपना फैसला होना चाहिए कि उसे घूंघट करना है या नहीं। अगर वो नहीं करना चाह रही, तो उसे फोर्स मत करो। मानवी का कहना है कि मेरे हिसाब से ये प्रथा कतई सही नहीं है। हालांकि कुछ महिलाओं को घूंघट करना अच्छा लगता है।

बड़ो की इज्जत के लिए घूंघट जरुरी नहीं- हिमांशी अरोड़ा

             हिंमाशी अरोड़ा, भिवानी

हिमांशी का कहना है कि धीरे-धीरे ये घूंघट प्रथा खत्म होती जा रही है। मुझे लगता है कि वक्त के साथ हमे बदलना चाहिए। घूंघट आंखों की शर्म के लिए किया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से अपने से बड़ो को सम्मान मिलता है। लेकिन मेरा मानना है कि आखों की शर्म का आखों में होना ज्यादा जरूरी है। अगर घूंघट करने के बाद भी हम बड़ों की इज्जत न करें तो वह घूंघट किसी काम का नहीं।

महिलाएं ही हैं महिलाओं की दुश्मन- कविता शर्मा

कविता शर्मा, दिल्ली

दिल्ली से कविता शर्मा ने कहा है कि महिलाओँ को घूंघट करने के लिए महिलाएं ही ज्यादा फोर्स करती है। सास, ननद, जेठानी या घर की कोई बुजुर्ग महिला शादी के पहले दिन ही इस घूंघट वाली रिवाज के बारे में अच्छे से समझा देती है। इनका मानना होता है कि अपने पति से बड़े उम्र के पुरुषों को भूल से भी अपना चेहरा नहीं दिखाना। हालांकि अपने पति से छोटे उम्र के पुरुषों के साथ आप हंसी मजाक भी कर सकते हैं और पर्दा करने की भी कोई जरुरत नहीं। समझ नहीं आता घूंघट करने का ये कौन सा रिवाज है जो महिलाओं पर जबरदस्ती थोप दिया गया।

 

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