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परवरिश जिंदगी का एक अहम हिस्सा है, क्योंकि परवरिश के जरिए हम नए समाज का निर्माण करते हैं। हमें आने वाले समय में कैसा समाज चाहिए वो हमारी आज की परवरिश पर निर्भर करता हैं। इसलिये हमें अपने आंख, कान और दिमाग खोलकर अपने Past और Future दोनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी परवरिश को कामयाब बनाना होगा। असली बात में सुनीता सैनी ने परवरिश को लेकर अपने विचार सांझा किए हैं।

परवरिश को लेकर खुद का अनुभव

इस मामले में मेरी जो समझ और राय है वो मैं यहां सांझा करना चाहती हूं। हमारे (मेरे और मेरे पति के) दोनों बच्चे बड़े हो गए हैं और हमारी परवरिश लगभग अच्छी रही। क्योंकि दोनो बच्चें हमसे जितना प्यार करते है उतनी ही Respect भी करते है। हमारे बच्चे सब रिश्तेदार पड़ोसी और Friends की भी रिस्पेक्ट करते हैं। मां बाप अपने बच्चो से ओर क्या उम्मीद कर सकते हैं।

दूसरों को देखकर लगता है नहीं बन पाई अच्छी मां

सुनीता का कहना है कि जब अपने आस पास की Parenting को देखती हूं यानी की दूसरे Parents को अपने बच्चों के लिए इतनी मेहनत करते हुए देखती हूं, तो मुझे ऐसा लगता हैं मैं एक बहुत अच्छी मां नहीं रही हूं। क्योंकि सच में मुझे अपने बच्चों पर इतनी मेहनत करनी ही नहीं पड़ी। क़रीब 20-22 साल पहले भी मैंने ऐसे Parents देखें है, जो अपने बच्चों पर बड़ा ध्यान देते थे और उनकी छोट-छोटी ख्वाहिशें पूरी करते रहे हैं।

सच कहूं तो मैंने अपने बच्चों के लिए इतना नहीं किया और इस बात के लिए मुझे  कभी-कभी मुझे बुरा फील होता है। लेकिन मेरे बच्चो को कभी ऐसा नहीं लगा। शायद जैसे मां बाप को अपने बच्चें जैसे भी हो प्यारे लगते हैं वैसे ही बच्चें भी अपने मां बाप से प्यार करते ही हैं। लेकिन प्यार में Respect भी शामिल हो तो वह प्यार Complete माना जाता हैं।

Teenage में बच्चों को समझाना छोड़कर समझना शुरू करें

अपने बच्चों के साथ सुनीता सैनी

सुनीता सैनी का कहना है कि अगर बच्चें आपसे प्यार करने का दावा करते हैं, लेकिन बहुत बार आपको समझने की कोशिश नहीं करते और आपकी बात नहीं मानते  चीखते चिल्लाते हैं, जिद्द करते हैं, झगड़ा करते हैं। तो यहां Respect की कमी से प्यार का दावा दिखावा सा हो जाता है। मेरे बच्चो ने कम से कम Teenage से पहले मेरे साथ ऐसा कभी नहीं किया और teenage के बाद मैंने भी उनको समझाना कम करके समझना शुरू कर दिया। उनसे दोस्ती कर ली, जिसकी वजह से वो मुझसे अपनी हर अच्छी बुरी बात Share कर लेते हैं और मैं उनको सही बात पर शाबाशी देती उनके साथ chill करती हूं और गलती पर उनको डांटने की बजाय समझने की कोशिश करती हूं और उन गलतियों को सुधारने में उनका साथ देती हूं।

बच्चों को डांटना भी है जरुरी

हालांकि कुछ बातों पर बच्चों को डांटना जरुरी है ये कहना है सुनीता सैनी का। बच्चों को उन्हीं बातों पर डांटना चाहिए जिनपर लगता है कि वो डांट खा सकते हैं और अपनी गलती खुद सुधार सकते हैं। मैं उन्हें सजा इस तरह से देती थी कि मुझे ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती थी और उन्हें बात समझ में आ जाती थी क्योंकि उस गलती के लिए मेहनत मैं उनसे ही करवाती थी अपनी गलती सुधारने के लिए। यह मेरा Mastermind Parenting Rule होता था। इन बातों के लिए मुझे अपने ऊपर Proud Feel होता है। लेकिन सच में, मैं अपने बच्चों को इतना सुलझा हुआ पाती हूं तो proud feel करना बनता हैं।

ममता को नहीं होने दिया कभी स्वार्थी

मेरी parenting का सबसे अच्छा पहलू ये है की मैंने अपनी ममता को कभी स्वार्थी नहीं होने दिया। मैंने जितना प्यार अपने बच्चों से किया उतना ही हर उस बच्चे से किया जो मेरे संपर्क में आया। सुनीता का कहना है कि प्यार ही नहीं उन्हें समझा भी समझाया भी, कभी मैंने अपने मन में ये ख्याल नहीं आने दिया की ये मेरे बच्चें हैं और ये किसी ओर के मेरे लिए बच्चें बस बच्चें ही रहे, अपने या पराए नहीं। जिसकी वजह से मेरा किसी भी बच्चे के Parents से कभी झगड़ा भी नहीं हुआ।

हालांकि ये इतना आसान नहीं होता कभी -कभी कड़वे घूंट भी पीने पड़े। लेकिन वो कहते हैं ना कि किसी बीमारी को अपने से दूर रखने के लिए  कड़वी दवाई पीनी पड़े तो पी लेनी चाहिए तो मैंने भी अपने बच्चों को गलत संस्कारों से दूर रखने के लिए कुछ कड़वे घूंट खुशी-खुशी पी लिए। इन सब बातों में मेरे पति ने भी मेरा हमेशा साथ दिया। हां उन्होंने कई बार बच्चो को छोटी छोटी बातों के लिए डांटा भी है जो मेरे प्यार से cover up हो जाता था और कभी मैं डांटती तो उनका प्यार cover up कर देता।

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बच्चों के सामने दूसरे बच्चों की करें बड़ाई

बच्चों को दूसरे बच्चोंं के साथ कंपेयर भी करना जरूरी है, लेकिन positivily, यानी की दूसरे बच्चों की तारीफ अपने बच्चों के सामने करके जो values उनमें नहीं है वो हमें डालनी है। सुनीता का कहना है कि  ” अगर अपने बच्चों के मोह में पड़कर हम दूसरे बच्चों की कमियां उनके सामने लाएंगे तो अपने बच्चों की कमियां शायद हम दूर न कर पाएं लेकिन दूसरे बच्चों की खूबियों का गुणगान अगर हम अपने बच्चों के सामने करते हैं तो शायद उनमें अच्छे सस्कारों के बीज डाल सकते हैं।”

बच्चों को जैसा देखना चाहते हैं उनके सामने वैसा रोल प्ले करें

बच्चो में ये संस्कार होने चाहिए कि वो सिर्फ माता-पिता से ही नहीं बल्कि अपने से बड़े को अपने मां बाप जैसा प्यार और इज्ज़त दें। जाहिर सी बात है कि जैसा हम बच्चों के सामने दूसरे के बारे में बात या व्यवहार करेंगे, बच्चो को वैसी सिख हम देंगे नही, अपने आप उनमें चली जाएंगी। सुनीता ने अपने परवरिश को लेकर विचार सांझा करते हुए कहा है कि मैंने खुद को उनके सामने वैसा ही प्रस्तुत किया जैसा मैं उन्हे देखना चाहती थी।

अपने आप को जितना हो सकें पॉजिटिव रखा। इसलिए मुझे अपने बच्चों को कभी ज्यादा कुछ सीखाना नहीं पड़ा बस वो मेरे व्यवहार से अपने आप सीखते गए। सिर्फ बच्चें ही नही कोई भी, कुछ भी सीखने के लिए सिर्फ सुनना काफी नहीं देखकर ज्यादा अच्छे से समझते और सीखते हैं। यानी की Motivation Temporary होता हैं और Inspiration Parmanent इसलिए बच्चों को या किसी को भी कुछ भी सिखाने के लिए Inspiration बनिए बजाय उन्हें Motivate कर कर के Irritate करने से।

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1 से 5 साल के बीच ही बच्चों को सब समझाने की जरुरत

अगर हम अपने बच्चों के मोह में दूसरे बच्चों को डांटेंगे और उनके पेरेंट्स के साथ झगड़ा करेंगे तो बच्चे हमें देखकर वह चीजें अपने आप सीख जाएंगे हमें उन्हें सिखाना नहीं पड़ेगा। अगर हम बच्चों पर छोटी छोटी बातों पर गुस्सा करेंगे तो उन्हें अपने आप गुस्सा करना आ जाएगा। अगर हम अपने बच्चों की सीखने की उम्र में यानी 1 से 5 की उम्र में उनमें गुस्सा नाराजगी या किसी भी तरह की Negitive Sence को enjoy करेंगे और उस बात पर उन्हें खुश होते दिखेंगे तो वो उन्हें सही समझकर अपनी आदतों में शामिल कर लेगे और ये उनके संस्कार बन जाएंगे। यह बहुत छोटी सी बात है, जो पेरेंट्स समझ नहीं पाते हैं।

बच्चे को मोह से नहीं प्यार से सींचना है

मोह और प्यार में यही फर्क है की मोह सिर्फ़ खून के रिश्ते महसूस करता है और प्यार हर अच्छे बुरे इंसान में सिर्फ़ उसके गुण देखकर बस प्यार ही करता है। हम आने वाले समाज को अगर अच्छी values देना चाहते है तो हमें अपने बच्चों को मोह से नहीं प्यार से सींचना होगा। प्यार जो एक नदी के पानी की तरह स्वच्छ होता है जो कहीं पर भी ठहरता नहीं है, बहता रहता है। वही मोह सिर्फ अपने में सिमटा हुआ रुका हुआ पानी का गड्ढा है जो एक जगह पर पड़ा-पड़ा सड़ जाता है और बीमारियां पैदा करता हैं। सोचिए कही आप अपने बच्चों को बीमारी वाले पानी से तो नहीं सींच रहें।

सुनीता सैनी (रानी),चंडीगढ़

 

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