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फलों की गुणवत्ता और ताजगी को बनाए रखना आज किसानों के लिए चुनौती बना हुआ है। बागानों में फलों को पकने का ध्यान रखना आवश्यक है। फल कब पकेगा यह किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। लेकिन अब आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि फल कितने पके हैं। इस सेंसर से फल की फसल काटने के साथ-सात परिवहन का काम आसान हो जाएगा। यह सिस्टम सस्ता भी है इसलिए खास कर महंगे फलों को दूर-दूर तक भेजने में बहुत उपयोगी साबित होगा।

जोधपुर IIT ने डेवलप की कम लागत की सेंसर बेस टेक्नोलॉजी

अब मौजूदा तकनीक में केमिकल मिक्स होने के कारण फल जल्दी खराब हो जाता है । लेकिन अब जोधपुर IIT ने ऐसी तकनीक बनाई है ,जो कम लागत में बनी है और सेंसर पर आधारित है। इस सिस्टम से फलों की सेल्फ लाइफ और गुणवत्ता बढ़गी और निर्यात में बढ़ोतरी होगी। इससे यह काम बेहतर होगा और बर्बादी कम होगी। यह फल उद्योग के लिए बहुत लाभदायक होगा। इधर सेंसर बेस टेक्नोलॉजी भी है। लेकिन वह बहुत महंगी होने से सभी किसानों को इसका लाभ नहीं पहुंच पाता है।

फ्रूट की गुणवत्ता का पता चलेगा

फल-उत्पादकों के लिए पेड़ पर लगे फलों के पकने की अवस्था का समय पर आंकलन करना बहुत जरूरी होता है। इस टेक्नीक से फ्रूट के पकने का सही समय पता लग जाएगा। यह सस्ती होने के साथ-साथ किसानों को फायदा पहुंचाएगी और मंहगे फ्रूट का चयन करने में भी आसानी होगी। यह सेंसर फ्रूट का टच कर या हल्के दबाव से ही उसके पकने का समय बता देगा। किसान फ्रूट की क्वालिटी के हिसाब से उसे सलेक्ट कर सकेगा। इससे फ्रूट खराब कम होंगे और एक्सपोर्ट भी बढे़गा।

महंगे फलों की छँटाई के तरीकों में आएगा बदलाव

माइक्रो सेंसर रासायनिक विश्लेषण एवं इलेक्ट्रो केमिकल सेंसिंग पर बेस है। इससे फलों की छंटाई और उनके पकने का पता लगना आसान होगा। सेंसर की मदद से फलों की बर्बादी कम होगी। महंगे फलों की छँटाई के तरीकों में बदलाव आएगा और फलों की तुड़ाई अनुमान लगाने में सेंसर मददगार साबित होगा। सेंसर से फलों की गुणवत्ता और उनके पकने में लगने वाले समय के आधार पर भारी मात्रा में फलों को की छँटाई आसान हो सकती है।

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