नवरात्री के पावन पर्व पर एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है। पूरे नौ दिन भक्तों में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। इसी वजह से मंदिरों में दिन-रात भीड़ देखने को मिलती है। मां का एक मंदिर ऐसा भी है जहां की परंपरा के बारे में जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। यह प्रसिद्ध मंदिर अपने आप में अनोखा है। दरअसल यहां रक्त चढ़ाकर माता काे प्रसन्न करने की परम्परा है। इस मंदिर में लोगों की इतनी अटूट श्रद्धा है कि यहां पूरे साल भक्तों की भारी भीड़ जुटती है, वहीं नवरात्र के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की संख्या कई गुना बढ़ जाती है।
क्रांतिकारी बाबू बंधू सिंह के पूर्वजों ने बनवाया था मंदिर
गोरखपुर जिला मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर देवरिया रोड पर फुटहवा इनार के पास तरकुलहा देवी मंदिर है। कहा जाता कि बाबू बंधू सिंह तरकुलहा के पास स्थित घने जंगलों में रहकर मां की पूजा-अर्चना करते थे। देशभक्त बंधु सिंह द्वारा आजादी के लिए अंग्रेजों का सिर काटकर मां के चरणों में चढ़ाया जाता था। यहां चैत्र रामनवमी से एक माह का मेला लगता है। इस मंदिर में मुंडन, जनेऊ करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
जब ताड़ के पेड़ से बहने लगा था खून
लोगों का यह मानना है कि बाबू बंधू सिंह ताड़ के घने जंगलों में पेड़ के नीचे पिंडी बनाकर मां की अराधाना करते थे। उनके कार्यों को देखते हुए अंग्रेजो ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई। जब भी अंग्रेज ने उन्हे फांसी लटकाते हर बार फंदा टूट जाता था, ऐसा अंग्रेजों ने सात बार किया। यह देखकर अंग्रेज परेशान हो गए। इसके बाद बंधु सिंह ने तरकुलहा देवी से आग्रह किया कि मां अपनी चरणों में जगह दें। आठवीं बार बंधू सिंह ने स्वंय फांसी का फंदा अपने गले में डाला और शहीद हो गए। बंधू सिंह के फांसी पर लटकते ही दूसरी तरफ स्थित ताड का पेड टूट गया और उसमें से खून निकलने लगा। बाद में इसी स्थान पर भक्तों ने मंदिर का निर्माण कराया। इसी मंदिर में आज भी हजारों में लोग पूजा-अर्चना के लिए जुड़ते हैं।
अब नर बलि की जगह दी जाती है पशु बलि
इस मंदिर में नर बलि की शुरुआत शहीद बंधू सिंह ने की थी। उनकी शहादत के बाद नर बलि की जगह पशु बलि ने ले ली। अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद लोग यहां बकरे की बलि देने आते हैं।बकरे के मीट को मिट्टी के बर्तन में पका कर उसे प्रसाद के तौर पर खाते हैं। इस मंदिर में मन्नत पूरी होने पर घंटी बांधने का भी रिवाज़ हैं, यहां आपको पूरे मंदिर परिसर में जगह जगह घंटिया बंधी दिख जायेगी।
ये भी पढ़े- एक ऐसा अनोखा पेड़, जिस पर लगते हैं 40 तरह के फल