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Movement of planets– सौरमंडल का प्रत्येक ग्रह हमारे जीवन पर सीधा प्रभाव डालता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राशियों में ग्रहों के गोचर से मनुष्य की शारीरिक, मानसिक और आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव आते हैं। इन्हीं ग्रहों की चाल तथा जन्म समय व नाम के आधार पर ही ज्योतिषी गणना करते हैं और उपाय बताते हैं।

ग्रहों की चाल को समझने के लिए द यूनिक भारत ने स्वास्तिक ज्योतिष एवं राशि रत्न संस्थान के ज्योतिष पंडित शिवकांत गोड शास्त्री से बात की। गोचर पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि ‘गो‘ का अर्थ है नक्षत्र तथा ‘चर‘ का अर्थ है चाल, यानी नक्षत्र/ग्रहों की चाल।

ज्योतिष शास्त्र में सूर्य से लेकर राहू और केतु ग्रहों की अलग-अलग चाल है। सूर्य से दूरी व अपनी धुरी के अनुसार ग्रह राशी परिवर्तन करते हैं, जिसे कक्षीय अवधि कहा जाता है।

ग्रहों की चाल(planetary movements)

सूर्य के चारों ओर चक्कर पूरा करने की अवधि हर ग्रह के लिए अलग होती है। पंडित शिवकांत गौड ने बताया कि सूर्य एक महीने में राशि परिवर्तन करते हैं, यानी संपूर्ण बारह राशियों में गोचर के लिए एक साल लेते हैं। चंद्र की कक्षा छोटी होती है। इसलिए चंद्र का राषि गोचर समय ढाई दिन है।

मंगल का 45 दिन, बुध का 27 दिन व शुक्र 25 से 27 दिन है। शनि की चाल धीमी है। वह एक राशि में सबसे अधिक ढाई वर्ष का समय लेता है और सूर्य का एक चक्कर पूर्ण करने में लगभग 29 वर्ष लगते हैं।

राहु व केतु का राशि परिवर्तन समय 18-18 महीने है। वहीं ब्रहस्पति एक वर्ष तक एक राशि में गोचर करता है यानी इसे सूर्य की एक परिक्रमा में लगभग बारह वर्ष का समय लगता है।

वक्री व मार्गी(retrograde and direct)

पंडित शिवकांत के अनुसार अपनी चाल के आधार पर ही ग्रह वक्री या मार्गी होते है। सभी ग्रह एक ही दिशा में आगे बढ़ते हैं। हमारे दृष्टिकोण(पृथ्वी) से यदि ग्रह आगे चल रहा है तो वह मार्गी है तथा पीछे चलने वाले ग्रह वक्री होते हैं।

अपनी कक्षा में चलते हुए जब कोई ग्रह पृथ्वी के निकट आता है तो पृथ्वी की गति के कारण वह पीछे छूट जाता है, इसलिए वह उल्टी दिशा में जाता दिखता है। ऐसे ग्रह को वक्री कहा जाता है। सूर्य व चंद्र हमेशा मार्गी रहते हैं तथा राहु व केतु वक्री। बाकी ग्रह पृथ्वी की गति के अनुसार कभी मार्गी व कभी वक्री होते हैं।

ग्रह गोचर प्रभाव(planet transit effect)

ग्रहों की कक्षीय अवधि व हमारे जन्म नक्षत्र जीवन का संपूर्ण हाल वर्णित कर देते हैं। इनसे हमारे व्यक्तित्व, करियर, स्वास्थ्य, रिश्तों आदि की स्थिति पता चलती है। उदहारण के तौर पर जिस व्यक्ति का शुक्र ग्रह मजबूत होगा, उसका जीवन विलासीय होगा तथा प्रेम संबंध भी मधुर होंगे। इसे गोचर फल कहते हैं।

गोचर फल जानने के लिए ज्योतिष ग्रहों की स्थिति से कुंडली बनाते हैं। सामान्यतः जन्म के समय जिस राशि में चंद्र हो उसे जन्म राशि मानते हुए पहला घर मान लेते हैं तथा फिर क्रमानुसार राशि व ग्रहों को बैठाया जाता है। इसके बाद ग्रहों की स्थिति व युति के आधार पर गणना की जाती है।

ज्योतिष पंडित शिवकांत गोल्ड शास्त्री,                स्वास्तिक ज्योतिष एवं राषि रत्न संस्थान

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नोट- ये लेख आपको सूचना प्राप्त करवाने के उद्देश्य से लिखा गया है। द यूनिक  भारत का उद्देश्य किसी भी प्रकार की धार्मिक भावनाओं को आहत करने का नहीं है। इस प्रकार की अन्य जानकारी के लिए जुड़े रहिए द यूनिक भारत के साथ धन्यवाद। 

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