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हाउसवाइफ होना बहुत मुश्किल काम है। सुबह सबसे पहले उठकर सबको बिस्तर पर चाय देना। सबका नाश्ता तैयार करना। बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, टिफिन बनाना, फिर झाडू-पोछा,बर्तन,कपड़े करना। घर के काम खत्म नहीं होते है कि बच्चे आ जाते हैं। फिर बच्चों के लिए खाना बनाना, घर में बुजुर्गों का चाय नाश्ता दोबारा देखना।

हाउसवाइफ के पास इतने सारे छोटे-छोटे काम हो जाते है करने के लिए, जो किसी को दिखाई भी नहीं देते। महिला बाहर जॉब पर भी जा रही है, तो भी घर का काम करके जा रही है। मिडिल क्लास परिवार के लिए हेल्पर रखना भी बडी चुनौती है। ऐसे में महिलाएं अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर रही है। असली बात में हमने कुछ महिलाओं की राय इस मुद्दे पर मांगी है कि वो अपनी सेहत को भी काम के चक्कर में एक तरफ कर रही है।

सेहत बाद में काम पहले

बहुत सारी महिलाओं के साथ ये दिक्कत होती है। बीमार होने पर भी उसे सारे कार्य करने पड़ते हैं। वो अपनी सेहत को एक तरफ करके दर्द और तकलीफ में गृहकार्य करती है। बहुत बार तो परिवार के सदस्य बिल्कुल नजरअंदाज कर देते हैं हाउसवाइफ को। सिरदर्द, पेटदर्द, कमरदर्द बहुत छोटी तकलीफ बनकर रह जाती है महिलाओं के लिए। किसी को बताने पर आगे से जवाब मिलता है, तुमको तो हमेशा कुछ न कुछ हुआ रहता है।

सेहत और साहस को ध्यान में रखकर लें जिम्मेदारियां: सुनीता सैनी(रानी)

कुछ महिलाओं को उनके परिवार के लोग खुद बोलते हैं, बाहर काम करने के लिए ताकि घर का खर्चा निकल सके, जबकि घर पर रहकर और पैसे बचाकर भी महिलाएं मासिक बजट संभाल सकती हैं। लेकिन कुछ महिलाओं को खुद ही खुजली होती हैं कि वह बाहर जाकर काम करें और समाज में अपनी एक जगह बनाए। मैं यह नहीं कहती कि इसमें कुछ बुराई है। लेकिन यह सब बहुत सोच समझ कर करना होता है। एक योजना बनाकर। परिवार में कितने सदस्य हैं, उनके साथ काम बांटकर। और जो काम वह करना चाहती हैं उस काम को कितना समय दे सकती हैं। यह सब सोच समझ कर करना होता है।

कुछ महिलाओं में इतनी जिम्मेदारियां उठाने की क्षमता नहीं होती जितनी  वह उठा लेती हैं। जिसकी वजह से बाद में फिर उन्हें ही संघर्ष करना पड़ता है, और समझौता करना पड़ता है अपने और अपने परिवार की सेहत के साथ। कभी-कभी तो आमदनी के साथ खर्चे भी उतने ही बढ़ जाते हैं, जिसकी वजह से बात वही की वही रह जाती है। इसलिए अपनी सेहत और साहस को ध्यान में रखते हुए महिलाओं को उतनी ही जिम्मेदारियां लेनी चाहिए जितनी कि वह पूरा कर सकती हैं। सिर्फ महिलाएं ही नहीं कोई भी यदि बड़े-बड़े सपने देखते हैं तो पहले उन्हें खुद को उन सपनों को पूरा करने के काबिल बनना चाहिए।

परिवार और बच्चे सेहत से पहले : किरण सैनी, जींद

हमारे काम किसी को नहीं दिखते, लेकिन पूरा दिन घर के काम करकर दम निकल जाता है। सब ये बोल देते हैं कि ये तो करना ही पड़ेगा, तुम कोई अकेली थोड़ी हो। बीमार होने पर भी बच्चों का सब हमें देखना है तो, हम ही देखेंगे। आदमियों को कोई मतलब नहीं है। खाना हम ही बनाएंगे चाहे कैसे भी एडजस्ट करो।

सच में महिला होना बहुत बड़ी चुनौती है। सेहत का तो कोई पूछता भी नहीं है। कभी-कभार थक हारकर लेट भी जाते हैं, तो सब फ्री समझ लेते हैं और फरमाईश आ जाती है। चाय पकौड़ो की या किसी और चीज की। किरण का कहना है कि खुद के लिए समय निकाल पाना भी बहुत मुश्किल है। घर पर पूरा दिन काम करके कुछ समय के लिए पढ़ती हूं। ये सोचती हूं कि अच्छी जॉब मिल जाए तो बेहतर है। लेकिन जॉब मिलने पर भी घर के काम तो करने ही पड़ेंगे। फिर तो और भागम भाग रहेगी। सेहत को बहुत बार इन्नोर करना पड़ता है। क्योंकि सेहत देखने से पहले परिवार और बच्चों का देखना पड़ता है।

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पुरुषों को घर के काम करने में आती है शर्म

पीड़ पराई को कोई नहीं जानता ये बात सच है। आपको खुद एक दिन गृहकार्य करने पड़ जाए,गृहकार्य तो छोड़ो चाय भी बनानी पड़ जाए, तो आफत आ जाती है। काम तो वो करेगी और उसको ही करने है। क्योंकि पितृसत्तामक समाज में कामों का बंटवारा हो चुका है। महिला चुल्हा, चौका और पुरुष बाहर का कार्य करेंगे। हांलाकि महिलाओं ने तो समाज के इस फैसले को चुनौती दी और निकल गई पुरुषों के बराबर कमाने। लेकिन पुरुषों का क्या जो आज भी उसी ढ़कोसले बाजी सोच के चुंगल में जकड़े खड़े है। जिनको घर के काम करने में शर्म आती है। जिनकों ये लगता है कि ये औरतों के काम है, मर्दों को नहीं करने। घिन्न आती है ऐसे लोगों की सोच पर जो महिलाओं को बीमार होने पर घर के कार्य से एक दिन की छुट्टी नहीं दे सकते।

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