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आजकल छोटी उम्र में ही माता- पिता बच्चों को मोबाइल फोन या इलेक्ट्रानिक डिवाइस दे देते हैं। जब बच्चे रोने लगते हैं या कुछ काम करते हैं तो बच्चे को मोबाइल फोन दे देते हैं। इससे बच्चा चुप तो हो जाता है लेकिन बच्चे को स्क्रीन की आदत लग जाती है। ये आदत काफी नुकसानदायक होती है। बच्चे वर्चुअल ऑटिज्म का शिकार हो जाते हैं। तो चलिए इस लेख में जानते हैं माता-पिता की ये गलती बच्चों पर कितनी भारी पड़ती है।

क्या होता है वर्चुअल ऑटिज्म

वर्चुअल ऑटिज्म के शिकार बच्चे में बोलने में दिक्कत आती है। माता पिता जब कम उम्र में ही बच्चों को मोबाइल फोन लैपटॉप या टैब आदि देने लगते हैं, तो ये बच्चों के व्यवहार पर असर डालते हैं। चार से पांच साल की उम्र में आते-आते बच्चों में इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं। बच्चे के समाजिक व्यवहार पर इसका असर पड़ता है। बच्चा सही से बोलता नहीं है। दूसरे लोगों से बातचीत करने में हिचक महसूस करता है।

दिल्ली के बीएलके मैक्स हॉस्पिटल की पीडियाट्रिशियन डॉक्टर रजनी फरमानिया ने एक वेबसाइट को जानकारी देते हुए बताया है कि बहुत बार माता-पिता सोचते हैं कि वो बच्चे को पढ़ना सिखा रहे हैं लेकिन वास्तव में वो गैजेट्स की बच्चों को लत लगवा रहे होते हैं। बच्चा जब चलना शुरु कर देता तो वो मोबाइल फोन के संपर्क में आ जाता है। बच्चों में ऑटिज्म होता नहीं है लेकिन इसके लक्षण आ जाते हैं। ये बच्चों के लिए काफी चिंताजनक विषय है।

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बच्चों को मोबाइल फोन से रखें दूर

डॉक्टर का कहना है कि  दो साल तक बच्चे को फोन से बिल्कुल दूर रखना चाहिए। मोबाइन फोन के संपर्क में आने से बच्चे का व्यवहार खराब होता है। बहुत बार वो ज्यादा गुस्से वाला हो जाता है, चिड़चिड़ापन उसमें आ जाता है, छोटी-छोटी बातों पर जिद्द करने लगता है। बच्चे में स्पीच डेवलपमेंट नहीं हो पाता। छोटी उम्र में ही बच्चों के हाथ में फोन थमा देना उनपर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

स्लीप पैटर्न होता है खराब

बहुत से माता-पिता होते हैं, जो बच्चे को रात में फोन थमा देते हैं। ये बच्चे के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। बच्चे का स्लीप पैटर्न तो खराब होता ही है साथ में उसकी एकाग्रता में भी कमी देखने को मिलती है।  दो साल तक बच्चे को फोन नहीं देना चाहिए। दो साल के बाद आप उसे अपने साथ बैठाकर टीवी दिखा सकते हैं, ऐसा डॉक्टर का कहना है।

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बीमारी से बच्चों को कैसे बचाएं

डॉक्टर रजनी का कहना है कि माता-पिता को इस पर काम करना होगा। अपने बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करें, स्लीप पैटर्न सही करें। बच्चे को मोबाइल फोन देना जहर से कम नहीं है। माता-पिता को खुद में भी बदलाव लाने होगें। बच्चों के सामने बहुत कम फोन का यूज करना होगा। बच्चों के साथ आउटडोर क्रियाकलापों में भाग लें। उसका मनोबल बढ़ाएं।

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